
वाराणसी: लक्ष्मीकुंड स्थित प्राचीन काली मठ का प्रांगण सोमवार की रात देवी भक्ति और सुर-लय-ताल से गुंजायमान हो उठा. मां काली के श्रृंगार और तीन दिवसीय संगीत महोत्सव का शुभारंभ भोजपुरी सम्राट भरत शर्मा व्यास के देवी गीतों से हुआ. जैसे ही उन्होंने मां के चरणों में संगीतमय अर्चना की, श्रोता भावविभोर होकर झूम उठे.

भरत शर्मा व्यास ने बांधा भक्तिरस का शमां
महोत्सव की पहली निशा की शुरुआत भरत शर्मा व्यास ने गीत “जीभ लटकल होई मुंड के माला, देखिह भवानी माई रूप होई काला” से की. गीत की हर पंक्ति पर श्रोताओं की तालियों और जयकारों की गूंज ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया. इसके बाद उन्होंने “जवने गांव काली माई के मंदिर नाहीं, उ गांव बेकार बा” और “निमिया के डार मैया झूलन झुलेली” जैसे लोकप्रिय गीत प्रस्तुत कर महोत्सव की छटा और बढ़ा दी.

मां काली का श्रृंगार और वैदिक अनुष्ठान
पहले दिन का विशेष आकर्षण मां काली का भव्य श्रृंगार रहा. मुख्य पुजारी पं. विकास दुबे (काका गुरु) ने पंचामृत स्नान और आरती कराई. महंत पं. ठाकुर प्रसाद दुबे ने मां को आभूषणों और फूलों से अलंकृत किया.11 ब्राह्मणों द्वारा गाए गए वैदिक मंगलाचरण ने माहौल को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया.

शहनाई, वादन और कथक से सजा मंच
कार्यक्रम का आगाज़ शहनाई की मंगल ध्वनि से हुआ, जिसे पं. जवाहरलाल और साथी कलाकारों ने प्रस्तुत किया. पं. सुखदेव मित्र (वायलिन), डॉ. सत्यवर प्रसाद (मृदंगम), अमरेंद्र मिश्र (सितार) और श्रीकांत मिश्र (तबला) ने मिलकर ताल-वाद्य से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.
कथक प्रस्तुति भी खास रही. पं. माता प्रसाद मिश्रा और पं. रुद्रशंकर मिश्र ने “या देवी सर्वभूतेषु जय जय जग जननि भवानी” पर भावपूर्ण नृत्य कर मां काली को नमन किया. तबले पर उदय शंकर मिश्र और हारमोनियम पर शक्ति मिश्रा ने संगत की.
लोक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियां
लोक संगीत की छटा बिखेरते हुए ज्योति माही ने “हे काली मां, तुही ना सुनबू तो कौन सुनेगा” गाकर भक्तों की आंखें नम कर दीं. गीतांजलि मौर्य का “जय जगदंबे जय मां काली”, राजेश तिवारी रतन का “महाकाल के काल भइल” और उजाला विश्वकर्मा का “झूला झूले मोर मइया काली” ने भक्तिरस की धारा बहाई.
अदिति शर्मा ने महिषासुर मर्दिनी पर भाव नृत्य प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया. अन्य कलाकारों में कुमार विनीत, पारुल नंदा और सृष्टि शर्मा ने भी भजनों की प्रस्तुति दी.
वाद्ययंत्रों की संगत से गूंजा प्रांगण
तबले पर सुधांशु राजपूत, ढोलक पर मोती शर्मा और विशाल शर्मा, बेंजो पर जियाराम, पैड पर शेखर विवेक और कीबोर्ड पर नीरज पांडे ने अपनी संगत से हर प्रस्तुति को जीवंत बना दिया.
कलाकारों का सम्मान
समापन पर सभी कलाकारों का स्वागत स्मृति चिन्ह और प्रसाद देकर किया गया. इस अवसर पर महेश पांडेय, रवि पांडेय गुड्डू, विनोद कुमार उन्नी, जितेंद्र प्रजापति और पारस पांडेय ने अतिथियों का अभिनंदन किया. तीन दिवसीय इस महोत्सव का आगाज़ पहले ही दिन देवी भक्ति, शास्त्रीय संगीत और लोक प्रस्तुतियों से यादगार हो गया. आगामी दिनों में भी देशभर के नामचीन कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से काली मठ के प्रांगण को भक्ति और संगीत की तरंगों से सराबोर करेंगे.





