
वाराणसीः कोडीनयुक्त कफ सिरप सिंडिकेट के सरगना शुभम जायसवाल के करीबी खोजवा निवासी दिवेश जायसवाल के घर पर ईडी ने शुक्रवार को जांच-पड़ताल की. दूसरी ओर उसकी गिरफ्तारी को लेकर एसआईटी भी लगातार दबिश दे रही है. फर्जी कूटरचित दस्तावेज से ड्रग लाइसेंस बनवाने के माहिर दिवेश दवा के अलावा शराब कारोबार भी करता है. शराब के 40 ठेके दिवेश ने अपने सगे संबंधियों और साथियों को दिलवाए.
कोयला कोराबर से दवा व्यवसाय में इस तरह आया दिवेश

फिलहाल इस प्रकरण की जांच कर रही एसआईटी के सामने यह बात आई है कि पहले दिवेश अपने पिता के साथ पुश्तैनी फुटकर कोयला व्यापार में हाथ बंटाता था. पिछले पांच साल से कुछ लोगों के साथ मिलकर इसने दवा का काम शुरू किया. इसके बाद दवा के बड़े कारोबारियों के संपर्क में आया और ड्रग लाइसेंस का पंजीकरण कराया. ड्रग लाइसेंस का चेन बनाने वाले दिवेश ने मोहल्ले और अन्य क्षेत्रों के बेरोजगार युवकों को साथ जोड़ा और उन्हें घर बैठे 40 से 50 हजार महीने की आमदनी का झांसा दिया.
कफ सिरप के बाद शराब और बियर ठेके में भी किस्मत आजमाई
हुकुलगंज के विशाल जायसवाल और बादल आर्य भी इससे जुड़े, जिन्हें रविवार को गिरफ्तार किया गया. जांच में सामने आया कि दिवेश ने कफ सिरप में कदम रखने के बाद शराब और बियर ठेके में भी किस्मत आजमाई. बताया जा रहा है कि सिंडिकेट में डाले गए 90 फर्म में 40 दुकान दिवेश के हाथ लगी है. दिवेश की फर्म डीएसए फार्मा समेत अन्य चिह्नित हुई है.

दिवेश और अंकुश दोनों पड़ोसी, दोनों पर प्राथमिकी है दर्ज
डीएसए फार्मा के प्रोपराइटर दिवेश और उसके पड़ोसी महाकाल फार्मा के प्रोपराइटर अंकुश सिंह के खिलाफ भी कोतवाली में प्राथमिकी दर्ज है. दिवेश और अंकुश साथ-साथ कफ सिरप के अवैध कारोबार में संलिप्त है.अंकुश उत्तराखंड के नैनीताल का रहने वाला है जो यहां अपने जीजा के मकान में रहता है.
बनवाया था ड्रग लाइसेंस, देता था 40 हजार प्रति माह
कफ सिरप की खरीद और बिक्री के मामले में कोलकाता से गिरफ्तार निशांत फार्मा के प्रोपराइटर प्रतीक मिश्रा और विश्वनाथ मेडिकल एजेंसी के प्रोपराइटर विशाल सोनकर को एसआईटी ने मंगलवार को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. एसआईटी की पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि शुभम जायसवाल के भरोसेमंद खोजवा निवासी डीएसए फार्मा के प्रोपराइटर दिवेश जायसवाल ने ड्रग फर्म का पंजीकरण और बैंक खाता खुलवाया था. इसके एवज में वह 30 से 40 हजार रुपये प्रति महीने देता था. फर्म से खरीद-बिक्री और रुपये के लेनदेन का पूरा ब्योरा दिवेश अपने पास ही रखता था. बाद में मालूम चला कि दोनों फर्म से 15 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है.




