
जस्टिस सूर्यकांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण कर चुके हैं. इनका कार्यकाल 15 महीनों का होगा. शपथ लेकर सूर्यकांत अब CJI भूषण आर गवई की जगह लेते हुए कार्यभार संभालेंगे. आपको बता दें कि भूषण आर गवई ने संविधान के अनुच्छेद 124 की धारा 2 के तहत अगले CJI के लिए सूर्यकांत का नाम खुद तय किया था. इसके बाद से राष्ट्रपति ने इस नाम पर मुहर लगाकर जस्टिस सूर्यकांत को बीते 30 अक्टूबर को CJI के रूप में नियुक्त कर दिया था. नए CJI का कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा.

हाल ही में 65 साल के पूरे हुए CJI बीआर गवई अपने चीफ जस्टिस के पद से रिटायर हुए थे. गवई ने अपना पद छोड़ने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज सूर्यकांत को अगला CJI बनाने के लिए निश्चत कर लिया. ये वहीं अगले CJI सूर्यकांत है जिन्होंने कई अहम मुद्दों पर अपने फैसले सुनाए हैं. उदाहरण के तौर पर अनुच्छेद 370 को रद करने से लेकर बिहार में SIR पर सुनवाई तक की. लेकिन आने वाले दिनों में वह संवैधानिक कानून, साइबर लॉ, आपराधिक न्याय से लेकर चुनावी निष्पक्षता से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई करेंगे. बता दें, सुप्रीम कोर्ट के सफर से पहले वो हिमाचल प्रदेश के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके थे. मई 2019 की बात करें तो उनकी नियुक्ति शीर्ष अदालत में हुई. उन्होंने 1981 में हिसार के गवर्न्मेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से स्नातक और 1984 में रोहतक के महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल की थी.

जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक छोटे से परिवार में हुआ था. सूर्यकांत ने उस बेंच में अपनी अहम भूमिका निभाई है जिसमें पेगासस जासूसी मामला जो काफी चर्चाओं में रहा है. इस मामले पर सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा कि, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राज्य को ऐसे जाने नहीं दिया जा सकता. इसके बाद कोर्ट ने साइबर विशेषज्ञों की स्वतंत्र कमेटी गठित की.

इतना ही नहीं सूर्यकांत उस पीठ का भी हिस्सा रहे जिसने 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी. उन्होंने रक्षा बलों के लिए ‘वन रैंक-वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना को भी बरकरार रखा था और इसे संवैधानिक रूप से वैध बताया न्यायमूर्ति सूर्यकांत उन सात न्यायाधीशों की पीठ में से एक थे, जिसने 1967 (सड़सठ) के एएमयू के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे चलते अल्पसंख्यक दर्ज पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था.




