
वाराणसी। काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत नमो घाट, वाराणसी में एक विशेष और प्रेरक पहल की शुरुआत की गई है, जहाँ गंगा तट पर नाविक परिवारों के बच्चे अब तमिल भाषा सीख रहे हैं. आईआईटी मद्रास द्वारा संचालित विद्या शक्ति स्टॉल पर इन बच्चों के लिए रोज़ाना तमिल सीखने का सत्र आयोजित किया जा रहा है. उन्होंने प्रतिदिन 5 तमिल शब्द सीखने का संकल्प लिया है, ताकि वे तमिलनाडु से आने वाले अतिथियों से सरलता और आत्मीयता से संवाद स्थापित कर सकें.
यह प्रयास न केवल भाषा सीखने का माध्यम है, बल्कि दो प्राचीन सभ्यताओं काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. नाविक समुदाय काशी की संस्कृति में विशेष स्थान रखता है. गंगा की लहरों के साथ जीवन जीने वाले इन परिवारों के बच्चे काशी आने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों से निरंतर संपर्क में रहते हैं. तमिल भाषा का ज्ञान उन्हें सांस्कृतिक संवाद और पर्यटन के नए अवसर भी प्रदान करेगा.

तमिल विश्व की सबसे प्राचीन, समृद्ध और साहित्यिक दृष्टि से गौरवपूर्ण भाषाओं में से एक है. भाषा सीखते हुए बच्चे न केवल नए शब्दों से परिचित हो रहे हैं, बल्कि तमिल समुदाय की ऐतिहासिक पहचान, साहित्यिक वैभव और सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में भी जान रहे हैं. यह पहल उन्हें विविधता के सम्मान का पाठ पढ़ाती है और यह समझने में मदद करती है कि भाषा दिलों को जोड़ने की सबसे सशक्त कड़ी है.
काशी तमिल संगमम् 4.0 का व्यापक उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक एकता को नई ऊर्जा देना है. जब काशी के बच्चे तमिल बोलेंगे और तमिलनाडु के अतिथि काशी की आत्मीयता महसूस करेंगे, तब “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का सपना और अधिक जीवंत हो उठेगा.
नमो घाट पर शुरू हुई यह छोटी-सी सीखने की यात्रा आने वाले दिनों में बड़े सांस्कृतिक बदलाव का आधार बनेगी. यह संदेश देती हुई कि गंगा और कावेरी केवल नदियाँ नहीं भारत की आत्मा को जोड़ने वाली अनंत धारा हैं.
काशी में चल रहे काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत बुधवार को नमो घाट पर छात्रों के लिए विशेष एकेडमिक सत्र का आयोजन किया गया. इस वर्ष कार्यक्रम की थीम “तमिल सीखें – तमिल करकलाम” रखी गई, जिसका उद्देश्य बच्चों को तमिल भाषा, लोककथाओं और दक्षिण भारतीय सांस्कृतिक वैभव से परिचित कराना था.




