
वाराणसी : जिले का पहला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) दुर्गाकुंड अब हार्ट अटैक के मरीजों का सफल थ्रॉम्बोलाइसिस करने वाला अस्पताल बन गया है. मंगलवार को यहां 70 वर्षीय एक बुजुर्ग को सीने में तेज दर्द के साथ लाया गया था, जहां महज कुछ ही मिनटों में ईसीजी और थ्रॉम्बोलाइसिस थेरेपी देकर उनकी जान बचा ली गई.मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि मिर्जापुर के अदलहाट निवासी मरीज को सीएचसी दुर्गाकुंड लाया गया. फिजिशियन डॉ. क्षितिज तिवारी के नेतृत्व में डॉ. मणिकांत तिवारी, डॉ. निकुंज वर्मा, डॉ. प्रवीण कुमार और पैरामेडिकल स्टाफ ने तुरंत ईसीजी किया और “गोल्डन ऑवर” (विंडो पीरियड) के अंदर ही थ्रॉम्बोलाइसिस इंजेक्शन देकर बंद पड़ी नस को खोल दिया. इससे मरीज अब खतरे से बाहर है.

डॉ. चौधरी ने गर्व के साथ बताया कि यह वाराणसी का पहला सीएचसी है जहां हार्ट अटैक का सफल थ्रॉम्बोलाइसिस किया गया है. अब तक जनपद के विभिन्न हार्ट अटैक सेंटर्स पर कुल 188 मरीजों की जान बचाई जा चुकी है. इनमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय पांडेपुर, शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा, एलबीएस अस्पताल रामनगर, स्वामी विवेकानंद मेमोरियल अस्पताल भेलूपुर और सीएचसी चोलापुर शामिल हैं. सीएचसी दुर्गाकुंड इस सूची में नया नाम बन गया है.
क्या है थ्रॉम्बोलाइसिस थेरेपी
थ्रॉम्बोलाइसिस थेरेपी एक विशेष इंजेक्शन है जो हृदय की बंद नस में जमा थक्के को घोल देता है और रक्त प्रवाह बहाल करता है. अगर यह थेरेपी समय पर मिल जाए तो मरीज की जान बच जाती है और बाद में जरूरत पड़े तो एंजियोप्लास्टी भी की जा सकती है. सीएमओ ने बताया कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को “हब” और सभी सरकारी अस्पतालों व सीएचसी को “स्पोक” बनाकर हार्ट अटैक परियोजना चलाई जा रही है, जिससे गांव-गांव तक त्वरित उपचार पहुंच रहा है. स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी हार्ट अटैक आने पर घबराने की जरूरत नहीं – निकटतम सीएचसी पर ही जान बचा सकते हैं.




