
वाराणसी - भारत में ताइवान आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के राजदूत मुमिन चेन ने सोमवार को वाराणसी में आयोजित मानविकी और सामाजिक विज्ञान पर तीसरी भारत-ताइवान द्विपक्षीय कार्यशाला में भाग लिया. इस कार्यशाला का विषय है "भारत और ताइवान में सतत भविष्य को आकार देना: अवसर और चुनौतियां". कार्यशाला का आयोजन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) और ताइवान की राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (एनएसटीसी) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.
टिकाऊ भविष्य के लिए रणनीति विकसित करने पर जोर
ताइवान से, राष्ट्रीय त्सिंग हुआ विश्वविद्यालय (एनटीएचयू) में भारत अध्ययन केंद्र के उप निदेशक, प्रो. तिएन-से फांग, आमंत्रित वक्ताओं के रूप में पाँच प्रोफेसरों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ आए.
राजदूत चेन ने अपने संबोधन में कहा कि आज के तेज वैश्विक बदलावों, भू-राजनीतिक तनावों, तकनीकी परिवर्तनों और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच, भारत और ताइवान एशिया में गतिशील और नवोन्मेषी समाजों के रूप में उभरे हैं. उन्होंने कहा कि दोनों देशों को अंतःविषय संवाद और संयुक्त अनुसंधान के माध्यम से अपनी जनता के लिए लचीलापन बढ़ाने और समावेशी, टिकाऊ भविष्य को आकार देने के लिए रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिए.
कार्यशाला में विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया गया, जिसमें भारत और ताइवान के बीच सहयोग के अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा की गई. राजदूत चेन ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों के बीच सहयोग से न केवल आर्थिक विकास होगा, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध भी मजबूत होंगे.
परिणामों पर संयुक्त द्विपक्षीय बैठक में होगी चर्चा
इस कार्यशाला के परिणामों पर आगामी द्वितीय भारत-ताइवान संयुक्त द्विपक्षीय समिति की बैठक में चर्चा की जाएगी. इस बैठक में दोनों पक्ष अगली द्विपक्षीय कार्यशाला के विषय पर निर्णय लेंगे. यह कार्यशाला भारत और ताइवान के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और एक स्थायी भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगी. दोनों देशों के बीच बढ़ते संबंधों से न केवल क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान मिलेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
इस कार्यशाला में यह भी स्पष्ट किया कि भारत और ताइवान के बीच सहयोग की संभावनाएँ अनंत हैं, और दोनों देशों को मिलकर एक उज्ज्वल भविष्य की दिशा में कदम बढ़ना चाहिए.




