
वाराणसी – धर्म और संस्कृमति की नगरी काशी में कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी पर शनिवार को भगवान धन्वंतरि की जयंती मनाई जाएगी. इसी दिन आरोग्य का अमृत कलश भी छलकेगा. भगवान विष्णु के अवतार एवं त्रिदेवों में से एक आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि आरोग्य आशीष का कलश लिए स्वयं अवतरित होंगे.
सुड़िया बुलानाला स्थित धन्वंतरि भवन में उनकी अनूठी अष्टधातु की मूर्ति सार्वजनिक रूप से दर्शनार्थ रखी जाएगी. रजत सिंहासन पर विराजमान लगभग ढाई फीट ऊंची, 25 किलोग्राम वजन की रत्न जड़ित मूर्ति साक्षात हरि के सामने उपस्थित होने का आभास कराएगी.

327 वर्ष पहले धन्वंतरि जयंती की हुई थी शुरुआत
एक हाथ में अमृत कलश, दूसरे में शंख, तीसरे में चक्र और चौथे हाथ में जोंक लिए भगवान धन्वंतरि दर्शन देंगे तो दोनों ओर सेविकाएं चंवर डोलाएंगी. दिव्य झांकी के दर्शन कर भक्त मंडली जयकार लगाएंगी. राजवैद्य स्व. शिवकुमार शास्त्री का परिवार पांच पीढ़ियों से प्रभु की सेवा में रत है. उनके बाबा पं. बाबूनंदन ने 327 वर्ष पूर्व धन्वंतरि जयंती का शंभारंभ किया था. यहां से ही अन्यत्र इसका प्रसार हुआ. वैद्यराज के पुत्र रामकुमार शास्त्री, नंद कुमार शास्त्री व समीर कुमार शास्त्री पूरे विधान से परंपरा निभा रहे हैं.
औषधीय पौधों से किया गया शृंगार
शुक्रवार को ही प्रभु धन्वंतरि के विग्रह की साज-सज्जा की गई, उनका औषधीय पौधों से शृंगार किया गया. तिथि विशेष पर प्रात:काल षोडशोपचार पूजन-अर्चन होगा. दोपहर में विशिष्ट दर्शन और शाम पांच बजे एकदिनी विशेष परंपरा अनुसार पट आम श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे. पूर्व के वर्षों में दर्शन रात्रि पर्यंत और अगले दिन तक चलता था लेकिन अब इसे तेरस की रात 10 बजे तक सीमित कर दिया गया है.

देवताओं के वैद्य और आयुर्वेद के थे प्रवर्तक
मान्यता है, प्रभु धन्वंतरि के दर्शन से वर्ष भर परिवार में रोग-व्याधि नहीं आती. श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि विष्णु के 24 अवतारों में धन्वंतरि भी एक थे. उन्हेंं सनातन धर्म में आयुर्वेद का प्रवर्तक और देवताओं का भी वैद्य माना जाता है. वे समुद्र मंथन के समय हाथों में अमृत कलश लिए पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे. उनके कलश से छलकी अमृत बूंदे जहां गिरीं, वहां महाकुंभ का उत्सव होता है.




