वाराणसी, सात वार और नौ त्योहारों की नगरी, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी पर गणेश भक्ति में डूबी नज़र आई. इस मौके पर शहर के गणेश मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा . खास आकर्षण रहा केदार खंड स्थित चिंतामणि गणेश मंदिर, जहां प्रथमेश गणेश का स्वयंभू विग्रह स्थापित है. 56 विनायकों में विशेष स्थान रखने वाले चिंतामणि गणेश के बारे में मान्यता है कि वे श्री काशी विश्वनाथ तक की सभी चिंताओं को दूर कर देते हैं .
सपरिवार विराजमान हैं गणपति
काशी का यह इकलौता मंदिर है, जहां भगवान गणेश सपरिवार विराजते हैं . सालभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन संकष्टी चतुर्थी के दिन खास भीड़ उमड़ती है . इस दिन व्रती महिलाएं अपने पुत्र की सुख-समृद्धि के लिए 17 घंटे का उपवास रखती हैं और चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर पूजा करती हैं .
मंदिर के महंत सुब्बाराव के अनुसार, चिंतामणि गणेश की लगातार 40 दिन पूजा करने से भक्तों की सभी चिंताएं, दुख और संकट दूर हो जाते हैं. साथ ही उनके यश, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है.
दुर्वा ग्रास – धन प्राप्ति के लिए .
धान का लावा – यश, कीर्ति और बच्चों की शिक्षा में लाभ के लिए .
बेसन के लड्डू – सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए .
पूजा पूर्ण होने पर नारियल अर्पित किया जाता है. माना जाता है कि गणेश जी भक्तों की सारी चिंताएं स्वयं ले लेते हैं .
महंत ने बताया कि हर माह की चतुर्थी को गणेश पूजा का विशेष महत्व है .
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी – संकष्टी चतुर्थी, जिसमें दिनभर व्रत और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है .
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी – विनायक चतुर्थी, जो उदया तिथि में मनाई जाती है .
भाद्रपद की चतुर्थी पर चिंतामणि गणेश मंदिर में 11 दिनों तक भव्य उत्सव होता है . इसमें शोभा यात्रा, संगीत कार्यक्रम और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों का सम्मान आदि शामिल है .