
वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) का इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (IMS) इन दिनों देशभर में सुर्खियाँ बटोर रहा है. वजह है – कार्डियोलॉजी विभाग की ऐतिहासिक उपलब्धि,महज 10 महीनों में 100 से अधिक मरीजों का जन्मजात हृदय रोग (Congenital Heart Disease – CHD) का इलाज कैथेटर-आधारित तकनीक से सफलतापूर्वक किया गया जिससे उनको नई जिंदगी मिली. खास बात यह है कि इनमें मरीजों की उम्र 12 दिन के नवजात शिशु से लेकर 65 वर्ष तक रही.

दिल की धड़कनों से जुड़ी जंग
जन्मजात हृदय रोग (CHD) वह स्थिति है, जब बच्चे का हृदय जन्म के समय ही सामान्य रूप से विकसित नहीं हो पाता. यह समस्या भारत में हजारों बच्चों और बड़ों को प्रभावित करती है. अक्सर इसका पता समय पर नहीं चलता और लोग निमोनिया, सांस की तकलीफ़, बार-बार बीमार पड़ना या शरीर के नीला पड़ने जैसी समस्याओं से जूझते रहते हैं.
पहले इसका प्रमुख विकल्प ओपन-हार्ट सर्जरी हुआ करता था, जिसमें बड़ा चीरा, अधिक जोखिम, लंबे समय तक भर्ती रहना और भारी खर्च शामिल था. लेकिन IMS BHU ने यह साबित किया कि आधुनिक कैथेटर-आधारित तकनीक से अब यह इलाज आसान, सुरक्षित और किफायती बन गया है.
कैसे होती है यह प्रक्रिया ?
इस तकनीक में डॉक्टर मरीज के दिल तक एक पतली नली (कैथेटर) के जरिए पहुंचाते हैं और वहीं से हृदय की खराबी को ठीक कर देते हैं.
इसमें चीरा नहीं लगता, टांके नहीं लगते.
अधिकतर मरीज अगले ही दिन डिस्चार्ज हो जाते हैं.
संक्रमण का खतरा बेहद कम होता है.
और सबसे बड़ी बात – यह इलाज अब गरीब मरीजों के लिए भी उपलब्ध है, क्योंकि आयुष्मान भारत, मुख्यमंत्री कोष और प्रधानमंत्री कोष जैसी योजनाएं अधिकांश प्रक्रियाओं को कवर करती हैं.

IMS BHU में अब नियमित होने वाले कैथेटर-आधारित उपचार
एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (ASD) डिवाइस क्लोजर
वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (VSD) क्लोजर
पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (PDA) डिवाइस क्लोजर एवं PDA स्टेंटिंग
बलून पल्मोनरी वाल्वोटोमी (BPV)
बलून एओर्टिक वाल्वोटोमी (BAV)
सुपीरियर वेना कावा (SVC) स्टेंटिंग
अन्य जटिल संरचनात्मक हस्तक्षेप
चिकित्सकों ने कहीं यह बात...
प्रो. विकास (विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी) -“ये प्रक्रियाएँ अब हमारे यहां नियमित रूप से हो रही हैं. सरकारी योजनाओं के अंतर्गत आने से हर वर्ग के मरीजों तक यह आधुनिक इलाज पहुंच रहा है. हमारी कोशिश है कि किसी भी मरीज को पैसों के अभाव में जीवन से समझौता न करना पड़े.”
डॉ. सिद्धार्थ - “जहाँ भी संभव हो, कैथेटर-आधारित उपचार को प्राथमिकता देनी चाहिए. यह आसान और सुरक्षित है. ओपन-हार्ट सर्जरी की तुलना में इसका लाभ अधिक है.”
डॉ. प्रतिभा - “जन्मजात हृदय रोग सिर्फ बच्चों तक सीमित नहीं. बहुत से वयस्क बिना निदान के जीते रहते हैं और बार-बार बीमार पड़ते हैं. हमारा संदेश है – ऐसे लक्षण दिखें तो समय पर जांच कराएं, क्योंकि सही समय पर किया गया इलाज पूरी ज़िंदगी बदल सकता है.”
संस्थान के नेतृत्व की प्रतिक्रिया
प्रो. एस. एन. संखवार, निदेशक, IMS BHU - “यह हमारे संस्थान के लिए गर्व का क्षण है. नवजात शिशुओं से लेकर बुज़ुर्ग मरीजों तक को लाभ पहुंचाना हमारे चिकित्सकों की निपुणता और समर्पण का प्रमाण है. अब वाराणसी में भी विश्वस्तरीय, न्यूनतम चीरे वाली तकनीक से हृदय रोग का इलाज संभव है.”
डॉ. के. के. गुप्ता, अधीक्षक, एसएसएच अस्पताल - “यह उपलब्धि केवल कार्डियोलॉजी ही नहीं, बल्कि एनेस्थीसिया और सभी सहयोगी विभागों के उत्कृष्ट टीमवर्क का नतीजा है. एसएसएच हमेशा से मरीज-केंद्रित देखभाल के लिए प्रतिबद्ध रहा है और यह सफलता उसी का उदाहरण है.”
टीमवर्क की मिसाल
इस उपलब्धि के पीछे रही मजबूत टीम –
एनेस्थीसिया विभाग: डॉ. ए. पी. सिंह, डॉ. संजीव और डॉ. प्रतिमा
वाराणसी बना हेल्थकेयर का हब
BHU का यह प्रयास न केवल पूर्वांचल, बल्कि पूरे उत्तर भारत के मरीजों के लिए जीवनदायिनी पहल है.अब मरीजों को महंगे इलाज के लिए महानगरों का रुख नहीं करना पड़ेगा.
IMS BHU ने साबित कर दिया है कि वाराणसी केवल धार्मिक-सांस्कृतिक नगरी ही नहीं, बल्कि आधुनिक चिकित्सा का भी एक बड़ा केंद्र बन चुका है.





