
वाराणसी – सत्यनिष्ठा के पैमाने पर खरे न उतरने वाले पुलिस उपनिरीक्षक महेश सिंह को अदालत ने कानून का पाठ पढाया है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विशेष न्यायाधीश पूनम पाठक की अदालत ने रिश्वतखोरी के दोषी पाए गए दरोगा महेश सिंह को तीन वर्ष की कैद और ₹5000 के अर्थदंड की सजा सुनाई. यह फैसला वाराणसी समेत पूरे प्रदेश की पुलिस व्यवस्था के लिए एक बड़ा सबक माना जा रहा है. 23 मार्च 2019 को सोनिया चौकी (थाना सिगरा) के तत्कालीन प्रभारी उपनिरीक्षक महेश सिंह ने एक मुकदमे में कार्रवाई करने के नाम पर शिकायतकर्ता राजकुमार गुप्ता से ₹5000 की रिश्वत मांगी थी.

एंटी करप्शन यूनिट ने की थी कार्रवाई
राजकुमार ने भ्रष्टाचार निवारण संगठन, वाराणसी इकाई से शिकायत की. शिकायत की गंभीरता देखते हुए एंटी करप्शन टीम ने तत्काल ट्रैप की योजना बनाई और तय तारीख को महेश सिंह को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया. अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक प्रथमेश पांडे और कमलेश कुमार यादव ने पूरे मामले की पैरवी की. विचारण के दौरान 6 गवाहों के बयान दर्ज किए गए, जिनसे आरोप सिद्ध हो गया. साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर अदालत ने महेश सिंह को दोषी ठहराया.
न्यायालय का कड़ा संदेश
अदालत ने कहा कि पुलिस विभाग में कार्यरत अधिकारी का आचरण समाज के विश्वास और न्याय व्यवस्था पर सीधा असर डालता है. ऐसे में भ्रष्टाचार की घटनाओं को किसी कीमत पर सहन नहीं किया जा सकता. इस फैसले ने साफ कर दिया कि रिश्वतखोरी करने वाले पुलिसकर्मी हों या अन्य कोई सरकारी कर्मचारी, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा; यह कार्रवाई न केवल भ्रष्ट अधिकारियों के लिए चेतावनी है, बल्कि इमानदार पुलिसकर्मियों की साख और जनता के भरोसे को भी मजबूत करती है.




