

यहां रावण के साथ-साथ बाकी पुतले भी आर्कषक का केंद्र बन बैठे हैं. इस पुतले की खासियत इतनी अद्भुत है कि जब प्रभु श्री राम रावण के पुतले पर तीर चलाएंगे तो नाभी से अमृत गिरेगा, आंखें मटकेंगी, खून के आंसू टपेंगे, हाथ में तलवारें घूमती नजर आएंगी, गले की मालाएं रंग- बिरंगी अलग अलग रंगों में नजर आएंगी, हे राम- हे राम का उदघोष करते हुए पुतले का दहन होगा...

बिलासपुर में साइंस कॉलेज मैदान में भव्य दशहरा उत्सव का आयोजन होने जा रहा है. मैदान में करीब 101 फीट का रावण तैयार किया गया है. इसके दहन और दशहरा उत्सव कार्यक्रम में मुख्य अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री श्री तोखन साहू,अध्यक्षता बिलासपुर विधायक श्री अमर अग्रवाल करेंगे. वहीं अतिथि के रूप में विधायक धर्मजीत सिंह, अटल श्रीवास्तव और सुशांत शुक्ला उपस्थित रहेंगे. कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि महापौर श्रीमती पूजा विधानी, जिला पंचायत अध्यक्ष राजेश सूर्यवंशी है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रावण की नाभि में अमृत ब्रह्माजी द्वारा प्रदान किया गया था. उन्होंने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान में एक अमृत कुंड दिया था. यह उसकी नाभी में स्थापित किया गया था, ताकि वह लगभग अमर हो जाए, क्योंकि यह कुंड अग्नि बाण से ही सूख सकता था और केवल भगवान विष्णु ही उसका उपयोग कर सकते थे. रावण की नाभि में अमृत होने का श्रेय उसकी पत्नी मंदोदरी को जाता है, जिसने इसे अपने पति में स्थापित कराया. इसके बारे में रावण और मंदोदरी के अलावा एक ही शख्स जानता था और वह था विभीषण, जो उनका सबसे छोटा भाई था.

धर्म ग्रंथों के अनुसार, बाली और रावण के बीच एक बार युद्ध हुआ. इसमें रावण को अंदरूनी चोट लगी, जिससे लंकापति रावण बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया. इसके चलते उसकी पत्नी मंदोदरी बहुत चिंता में पड़ गई. उसने तय किया कि वह महाराज रावण को अमर बना कर ही रहूंगी. इसके लिए मंदोदरी अपने माता-पिता के पास पहुंची.

वह मयदानव की बेटी थी. उसके पिता अद्भुत ताकतों के स्वामी थे. मां कई शक्तियों से परिपूर्ण थीं. अमृतकलश चंद्रलोक पर था. वहां मंदोदरी जा नहीं सकती थी, क्योंकि उसके पास वहां उड़कर जाने की शक्ति नहीं थी. उसके मां-पति ने ये शक्तियां उसे दीं. वह उड़कर चंद्रलोक गई. हालांकि वहां जाकर भी वहां के अमृतकलश कुंड से अमृत की कुछ बूंदें लाना भी आसान नहीं था.
कोई इसे चुरा नहीं सकता था. मंदोदरी के पिता ने ही उसे स्वर्ग लोक में स्थापित किया था. चमत्कारिक और विद्युत शक्तियों द्वारा इस कलश को स्थापित किया गया था. कोई व्यक्ति इसके पास भी नहीं पहुंच सकता था. कलश के नीचे से बहुत सारी विषैली गैसें निकलती थीं. जिससे मृत्यु हो जाती थी. इसके चारों ओर गर्म लावा निकलता रहता था. इसलिए अमृत कलश को चुराना काफी असंभव था.
चंद्रलोक का एक नियम है कि, चन्द्र देव साल में एक बार अश्विन मास की पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) के दिन इस अमृत कलश को वहां से निकालते हैं. तब धरती पर इसकी कुछ बूंदें गिराते हैं. मंदोदरी के सामने ये अच्छा मौका था. जिस दिन मंदोदरी चंद्रलोक गई, उसके दो दिन बाद ही पूर्णिमा थी. जैसे ही पूर्णिमा की रात चंद्र देव ने अमृत कलश वहां से बाहर निकाला, तभी रावण की पत्नी मंदोदरी मौका पाकर अमृत कलश चुराकर भागने लगी.

देवताओं को इस बात का पता लगते ही उन्होंने मंदोदरी का पीछा किया. घबराई मंदोदरी ने अमृत की कुछ बूंदें एक अंगूठी में भरकर नीचे धरती की ओर छलांग लगी दी. पति को अमर करने के काम में उसने देवर विभीषण का सहारा लिया. हालांकि विभीषण ने पहले यही कहा कि चोरी के अमृत का इस्तेमाल कतई उचित नहीं है, लेकिन भाई को बचाने के लिए मजबूरी में वह तैयार हो गए.

शरद पूर्णिमा के दिन इस अमृत की बूंद को रावण की नाभि में स्थापिक करने का फैसला किया गया. पहले इसके लिए अशोक वाटिका में रावण को बेहोश या अचेत किया गया. फिर विभीषण ने अमृत बूंदों को रावण की नाभि में स्थापित कर दिया, जिससे रावण अमर हो गया. विभीषण ही ऐसे शख्स थे, जिन्हें नाड़ी का ज्ञान था, वह उस समय के एकमात्र वैस्कुलर सर्जन भी थे. इसी अमृत के बारे में विभीषण ने श्री राम को बताया. जिसकी मदद से श्री राम ने आग्नेय बाण से उसे सुखा दिया, जिसके कारण रावण की मृत्यु हो सकी थी.




