
वाराणसी - संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पदोन्नति घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है. यह प्रकरण इसलिए लाइमलाइट में है क्योंकि विश्वविद्यालय के प्रकाशन निदेशक डॉ. पद्माकर मिश्र और अज्ञात लोगों के खिलाफ कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर पदोन्नति हासिल करने के आरोप में चेतगंज थाने में धोखाधड़ी, जालसाजी और अन्य गंभीर धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई है. यह एफआईआर विश्वविद्यालय के मुख्य कुलानुशासक डॉ. विजय कुमार शर्मा की ओर से दी गई तहरीर के आधार पर हुई. पुलिस ने मामले में जांच शुरू कर दी है.

ऐसे सामने आया फर्जी शासनादेश का खेल
तहरीर में बताया गया है कि डॉ. पद्माकर मिश्र ने अज्ञात सहयोगियों की मदद से फर्जी शासनादेश तैयार कर निदेशक प्रकाशन के पद पर पदोन्नति ले ली. उच्च शिक्षा विभाग की ओर से हुई जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि शासनादेश पर फर्जी हस्ताक्षर थे. दस्तावेजों की तारीखों में गंभीर गडबडियां थीं. पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी तरह कूटरचित थी.
जांच कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया कि विवादित शासनादेश की प्रति 15 जनवरी 2004 को विश्वविद्यालय में प्राप्त होना दिखाया गया है, जबकि उस दिन विवि में अवकाश था, जिससे दस्तावेज की प्रामाणिकता पर बड़ा सवाल खड़ा होता है.

शासनादेश की अनदेखी
हालांकि यह मामला नया नहीं है. शिकायतकर्ता हरिवंश कुमार पांडेय ने 2017 में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस पदोन्नति को फर्जी बताया था. शासन ने 2018 में दो सदस्यीय जांच कमेटी बनाई. 2019 में पदोन्नति निरस्त करने का आदेश जारी किया गया था. विश्वविद्यालय प्रशासन को FIR कराने के निर्देश दिए, गए थे. इसके बावजूद उस समय आदेश की अनदेखी करते हुए कोई कदम नहीं उठाया गया.
जांच में पता चला कि 2010 में निदेशक प्रकाशन पद के लिए भर्ती निकली थी, लेकिन डॉ. पद्माकर मिश्र ने अधिकारियों से मिलीभगत कर जाली आदेश तैयार कर लिया और उसे लागू करवा दिया. चेतगंज इंस्पेक्टर विजयनाथ शुक्ला ने बताया, “मामले में FIR दर्ज कर ली गई है और जांच की जा रही है. पूरे दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है.”




