वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कार्डियोलॉजी विभाग ने हृदय रोगियों के लिए बड़ी राहत की सौगात दी है. अब यहां मरीजों को वॉल्व प्रत्यारोपण के लिए न तो बड़े चीरे से गुजरना होगा और न ही घंटों तक चलने वाली सर्जरी का सामना करना पड़ेगा. विभाग में जल्द ही ट्रांस-कैथेटर एरोटिक वाल्व इंप्लांटेशन (टीएवीआई) तकनीक से प्रत्यारोपण शुरू किया जाएगा.
30 मिनट में बदलेगा वॉल्व, 24 घंटे में डिस्चार्ज
इस अत्याधुनिक तकनीक से महज 30 मिनट में वॉल्व बदलना संभव होगा और मरीज को केवल 24 घंटे के भीतर अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. पहले जहां सामान्य वॉल्व प्रत्यारोपण में कई घंटे का समय और बड़े चीरे के बाद एक सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता था, वहीं अब मरीज को इस झंझट से मुक्ति मिलेगी.
पूर्वांचल में पहली बार सुविधा
अब तक यह सुविधा केवल बड़े निजी अस्पतालों तक सीमित थी और पूर्वांचल के मरीजों को इसके लिए महानगरों का रुख करना पड़ता था. बीएचयू में अगले महीने से इस तकनीक के तहत पहला वॉल्व प्रत्यारोपण किया जाएगा.
किन मरीजों के लिए फायदेमंद ?
कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. विकास अग्रवाल के अनुसार, यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान साबित होगी, जो ओपन हार्ट सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं हैं. साथ ही उम्र अधिक होने या अन्य गंभीर बीमारियों की वजह से बड़ा ऑपरेशन जोखिमपूर्ण है.
कैसे होती है प्रक्रिया ?
टीएवीआई तकनीक में मरीज की सीने की हड्डी (स्टर्नम) नहीं काटनी पड़ती. जांघ की नस (फेमोरल आर्टरी) में एक छोटा सा पंचर किया जाता है. कैथेटर के जरिए वॉल्व को हृदय तक पहुंचाया जाता है. कैथ लैब में एंजियोप्लास्टी जैसी प्रक्रिया से नया वॉल्व प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. पूरे ऑपरेशन के दौरान कार्डियक सर्जन, कार्डियोलॉजिस्ट, कार्डियक एनेस्थेसिस्ट और परफ्यूजनिस्ट की टीम मौजूद रहती है.
खर्च होगा आधा
निजी अस्पतालों में इस तकनीक से वॉल्व बदलवाने पर करीब 25 लाख रुपये तक खर्च होता है. वहीं बीएचयू में यह प्रक्रिया केवल 12 से 15 लाख रुपये में पूरी होगी. यहां मरीजों से सिर्फ वॉल्व का शुल्क लिया जाएगा, जिससे हजारों रोगियों को बड़ी राहत मिलेगी. बीएचयू का यह कदम पूर्वांचल और आसपास के क्षेत्रों के हजारों हृदय रोगियों के लिए जीवनदान साबित होगा. बिना चीरे, कम खर्च और कम समय में वॉल्व प्रत्यारोपण की यह सुविधा अब आमजन की पहुंच में होगी.