India's Lal has developed the reusable automatic missile RAM.
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ के रहने वाले 19 साल के युवा प्रखर विश्वकर्मा जो चर्चा का विषय बन बैठे है. इस चर्चा का कारण यह है कि उन्हें "मप्र के मिसाइल मैन" के नाम से जाना जाता है. क्योंकि, वे एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचार कर रहे हैं. जिसके लिए प्रखर विश्वकर्मा ने एयरोएक्स स्पेस टेक्नोलॉजी की स्थापना की, साथ ही मिसाइल और ड्रोन जैसे तकनीकों में आगे बढ़ने के लिए वो दिन-रात मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसी कामयाबी ने उन्हें वैज्ञानिक का टैग दिया हैं, जिसे पाकर वो खुशी से झूम उठे हैं.

कंधों पर वैज्ञानिक का टैग और आंखों में आसमान छूने के सपनों को लेकर प्रखर विश्वकर्मा एक युवा वैज्ञानिक हैं. जो कई मुसीबतों को झेलते हुए जी-जान लगाकर की अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए कोशिशों में लगे हुए हैं. उन्होंने अपने काम का जिक्र कर बताया कि, "प्रोजेक्ट RAM" उनका काम ही नहीं ये वो सपना है जिसमें देश की सेवा बसी हैं, जिसके लिए उन्होंने एक अनोखी रियूजेबल मिसाइल (RAM) विकसित की है, बड़े ही सिद्दत के साथ प्रखर ने रियूजेबल मिसाइल (RAM) तकनीकि पर काम किया हैं. इसी प्रोजेक्ट ने इन्हें वैज्ञानिक कहलाने की पहचान दी है.

ये प्रोजेक्ट एक अत्याधुनिक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी खासियत यह है कि, जो हमला करने के बाद अपने लॉन्चिंग पॉइंट पर खुद ही वापस लौट आता है, इससे भी बड़ी बात तो यह है कि इसे दुबारा से उपयोग किया जा सकता है. यह तकनीक भारत के लिए काफी बेहतर होगा, क्योंकि कम लागत के साथ ये प्रोजेक्ट बार-बार हमला करने की क्षमता रखता हैं. जिससे रक्षा क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त होने की काफी उम्मीद हैं.
अब सवाल ये उठता है कि इतनी बड़ी कामयाबी हासिल करने के बाद भी आखिर ऐसी क्या वजह है जिसके चलते मिसाइल मैन" प्रखर विश्वकर्मा अपना जीवन-त्यागने को तक तैयार हो चुके हैं! इन सभी के पीछे की वजह 'संदिग्ध तत्वों' को माना जा रहा है. उनके जीवन की बात करें तो अपने काम को लेकर 2020 में नासा और इसरो दोनों से ही वो सम्मान पा चुके है, आखिरकार ऐसे में प्रखर को किस बात की चिंता सताने लगी है. जिसके चलते वो अब पुरी तरह से निराश हो चुके हैं. अपनी आप-बीती को लेकर उनका कहना है कि कुछ संदिग्ध लोगों द्वारा वो काफी परेशान हो चुके है, जिससे उनका वैज्ञानिक सफर चकना-चूर होने के सफर पर आ चुका है.

यहीं कारण है कि उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त किया और कहा कि, उनके सभी मिसाइल प्रोजेक्ट भारत सरकार को सौंप दिए जाएं ताकि उनका शोध देश के काम आ सके. क्योंकि, “मैं देश के लिए जीता रहा हूं, अगर ऐसे में मेरी प्रतिभा देश को काम आ जाए तो यही मेरी सच्ची श्रद्धांजलि होगी” हालांकि, अपने जीवन में इस मिसाइल के लिए आगे बहुत कुछ करना था, पर अफसोस कि सब कुछ अधूरा सा रह गया हैं. इसलिए मैं अपनी आखिरी इच्छा देश के सामने रख रहा हूं. अगर ये संभव नहीं हो पाया तो मैं अपने सभी पुरस्कारों और मिसाइल प्रोजेक्ट्स की फाइलों को वाराणसी में गंगा नदी में विसर्जित कर दूंगा.
वैज्ञानिक जैसी कामयाबी हासिल करने वाले और भारत को गर्व महसूस कराने वाले प्रखर ने अपनी पीड़ा को भारत देश के सामने रखा हैं. प्रखर द्वारा बंया किया गया ये दर्द हर किसी के जहन में उथल-पुथल मचाने लगा है. आखिर ऐसी क्या वजह है जो उन्हें अपना जीवन बर्बाद करने को मजबूर कर दिया है. खास बात तो यह है कि वैज्ञानिक प्रखर के दुख-दर्द को महसूस कर देशभर में लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘#SavePrakhar’ मुहिम शुरू कर दी है. वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और समाज के बुद्धिजीवियों ने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि भारत के इस प्रतिभा को समय रहते बचाया जा सके. इस जनता का स्पष्ट संदेश है —“एक प्रखर नहीं, यह भारत का भविष्य है जिसे बचाना होगा.”
प्रखर विश्वकर्मा के माता-पिता का नाम श्रीमती अरुण विश्वकर्मा (माता) और श्री रघुनंदन विश्वकर्मा (पिता) जो कि किराना दुकान चलाते है. उनकी बहन का नाम साक्षी विश्वकर्मा है. परिवार से मिली वैज्ञानिक सोच और देशभक्ति की प्रेरणा ने उन्हें "प्रोजेक्ट RAM" जैसे काम करने का हौसला दिया. प्रखर विश्वकर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट मॉडल स्कूल पालेरा से की, यहां से उन्होंने हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी की है. हालांकि, वर्तमान में वे Bansal Institute of Technology से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक कर रहे हैं. अंतरिक्ष प्रेमी होने के नाते वे भारतीय अंतरिक्ष टीम के प्रणोदन विभाग में शोध करने की तैयारी में लगे हुए हैं.

वे कहते हैं कि जैसे ही प्रशासन से सैन्य अड्डे पर मिसाइल परीक्षण की अनुमति मिलेगी, वे इसे जल्द से जल्द ही लॉन्च करेंगे. वे वर्तमान में इको-फ्रेंडली रॉकेट, आत्मघाती सैटेलाइट, खतरनाक सैटेलाइट और रिलॉन्च ऑटोमैटिक मिसाइल (प्रोजेक्ट RAM) पर काम कर रहे हैं. यह परियोजना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के साथ सहयोग में चल रही है. प्रखर BHU के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को पेटेंट करवाने और देश की सेवा में लाने की योजना बना रहे हैं. यह नवाचार भारत के रक्षा क्षेत्र को नई दिशा देगा और प्रखर का उद्देश्य भारत को अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है. उनका लक्ष्य भारत को अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में मजबूती के साथ आगे बढ़ाना है.
जानकारी के मुताबिक, प्रखर विश्वकर्मा को NASA और ISRO द्वारा Aditya L1 क्विज़ में भागीदारी के लिए प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया है. इतना ही नहीं, प्रखर चंद्रयान-3 के लॉन्चिंग टीम में शामिल भी हुए है. ये वहीं प्रखर है जिन्हें साल 2023 में जर्मनी में अंतरराष्ट्रीय एग्ज़िबिशन में भागीदारी के लिए आमंत्रित किया गया था, साथ ही उन्होंने नेहरू विज्ञान केंद्र (मुंबई), बिरला इंडस्ट्रियल म्यूजियम (कोलकाता), विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और ISRO – स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (अहमदाबाद) में प्रेजेंटेशन समेत वर्कशॉप में भागीदारी निभाई है. युवा वैज्ञानिक के इसी प्रतिभा के कारण भारतदेश में 132वें ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें ISRO ने अपना अंतरिक्ष प्रशिक्षक बनाया है.
वहीं, प्रखर जब सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण में शामिल हुए, तब उन्होंने वैज्ञानिकों से रॉकेट और इंजन की जानकारी लेते हुए लॉन्चिंग गैलरी से चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण देखा. उनकी इच्छा है कि, उनकी मिसाइल तकनीक को भारत सरकार, DRDO और ISRO जैसे संस्थानों का समर्थन मिले. ताकि, इसका प्रयोगात्मक विकास हो सके और यह भारत की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाए रखे. इन्हीं खूबियों की वजह से प्रखर इस वर्तमान काल में और आने वाले पीढ़ीयों के लिए एक बड़े प्रेरणादायक युवा वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ मिसाइल इंजीनियरिंग और अंतरिक्ष जैसे प्रोजेक्ट्स में हुनर दिखाया हैं.




