
वाराणसी - काशी, अयोध्या और मथुरा हमेशा से आतंकी निशाने पर रहे हैं. अब तक आधा दर्जन आतंकी बम ब्लास्ट झेल चुकी काशी में सबसे पहला बम धमाका 23 फरवरी 2005 को दशाश्वमेध घाट पर हुआ था. चाय की दुकान के पास हुए इस धमाके में नौ लोगों की मौत हुई थी और कई लोग घायल हुए थे. इस ब्लास्ट में घायल होकर अपाहिज हुए राजकुमार साहनी की आठ साल बाद 2014 में मौत हो गई थी. आठ साल तक राजकुमार ने मौत से भी बदतर दिन काटे थे.

पुलिस ने माना था सिलेंडर ब्लास्ट पर निकला कुछ और
पुलिस ने इस घटना दबाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी थी. पुलिस ने इसे सिलेंडर ब्लास्ट माना था, लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच में इसे आरडीएक्स से किया गया धमाका बताया गया था.
दशाश्वमेध घाट पर विस्फोट कर आतंकियों ने चेतावनी दे दी थी. उस दौरान भारी मात्रा में आरडीएक्स की बरामदगी को मात्र बारूद बताकर इसे आतंकी घटना से दूर-दूर का कोई नाता नहीं होना बताने के लिए अधिकारी महीनों परेशान थे. विस्फोट की वारदात को गैस सिलेंडर से हुए रिसाव से हुई दुर्घटना ही बताते रहे. बाद में जब जांच हुई तो पता चला कि यह एक आतंकी वारदात थी जिसमें अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग किया गया था. इसी ब्लास्ट ने चाय कि दुकान के पास में खड़े राजकुमार को मौत से बदतर जिंदगी दे दी थी. वह इस धमाके में घायल होने के बाद कभी बिस्तर से उठ नहीं पाया. उस समय सिर्फ पच्चीस हजार रुपये मुआवजा मिला था.
इस वारदात के कुछ ही दिनों बाद काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य द्वार के पास दो स्टील के बड़े डिब्बों में आरडीएक्स मिला था. पुलिस डिब्बों को लावारिस व खाली बताकर अपने साथ पुलिस चौकी ले गई. दो दिन बाद भारी सुरक्षा के बीच पुलिस अधिकारियों ने गंगा पार रेती में आरडीएक्स को निष्क्रिय किया था.
कूकर बम को मिस्त्री ने किया था निष्क्रिय
वाराणसी के संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर हुए बम धमाकों के बाद दशाश्वमेध मार्ग पर रखे कुकर बम को एक बिजली मिस्त्री द्वारा डिफ्यूज करने से बड़ी जनहानि टल गई थी. बाबूलाल अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन ऐसे मौकों पर उनके साहस की चर्चा हर किसी के जुबान पर होती है. दशाश्वमेध इलाके के लोग बताते हैं कि जम्मू कोठी के सामने पावदान बेचने वाले के यहां एक अनजान आदमी झोला रखकर चला गया था. आधे घंटे बाद संकटमोचन मंदिर और कैंट स्टेशन पर बम ब्लास्ट की खबरें आने पर पावदान बेचने वाले ने शोर मचाया कि एक आदमी झोला रखकर गया है. झोला खोला गया तो उसमें कुकर मिला, जिसमें घड़ी-तार और बैटरी के अलावा लाइटें जल रही थीं.
इसके बाद पूरे इलाके में भगदड़ मच गई। पास में ही खड़े बिजली मिस्त्री बाबूलाल ने बिना समय गंवाए कुकर में लगे तारों को नोंच दिया, जिसके बाद घड़ी रुक गई. बाद में आए बम डिस्पोजल दस्ते में शामिल लोगों ने बाबूलाल को जमकर फटकारा था. लोगों की जान बचाने के लिए बाबूलाल और उसके परिवार को शासन-प्रशासन की ओर से सम्मान नहीं मिला, जबकि बम निरोधक दस्ते को खूब वाहवाही मिली थी.
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ज्ञानवापी उडाने की थी साजिश
वर्ष 1998 में चौक के नीचीबाग डाकघर के पास एक रिक्शा पर लदा बमों का जखीरा फट गया था. उस घटना में रिक्शा चालक समेत कई राहगीर जख्मी हुए थे. हमेशा की भांति पुलिस अधिकारी इस मामले में भी लीपापोती करते हुए इस पटाखा विस्फोट करार देने में जुट गए थे. बाद में केस की फाइल को बंद भी कर दिया गया. बाद में इस मामले में नाटकीय मोड़ तब आया था जब इस प्रकरण में कुछ दिन बाद केंद्रीय खुफिया विभाग व दिल्ली पुलिस द्वारा ज्वाइंट आपरेशन में दो आतंकवादी पकड़े गए. गहन पूछताछ में यह जानकारी मिलते ही पकड़े गए आतंकियों ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में विस्फोट की साजिश रची थी. आतंकी टाइमर बम के माध्यम से विस्फोट की घटना को अंजाम देने वाले थे. उन्होंने इस अंजाम देने के लिए रिक्शा को माध्यम बनाया था, लेकिन गड़बड़ी उस समय हुई तब रिक्शा जाम में फंस गया और निश्चित समय पर ज्ञानवापी नहीं पहुंच सका था.

जाने कब - कब काशी में हुए बम ब्लास्ट
23 नवंबर 2005 - दशाश्वमेध घाट पर बम ब्लास्ट, छह लोगों की मौत, कई घायल.
7 मार्च 2006 - कैंट स्टेशन और संकटमोच मंदिर में सिलसिलेवार धमाके, दो दर्जन से अधिक मौतें.
7 दिसंबर 2010 - शीतला घाट पर बम धमाके में बच्ची समेत दो की मौत, 40 घायल.
23 नवंबर 2007 - कचहरी परिसर में सीरियल बम ब्लास्ट में तीन अधिवक्ताओं समेत नौ लोगों की मौत हो गई थी जबकि 50 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे.




