
वाराणसी : सूर्य की आराधना का महापर्व डाला छठ अर्थात सूर्य षष्ठी पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस बार लोक आस्था से जुड़ा सूर्य षष्ठी पर्व 27 अक्टूबर को व्रत व अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य के साथ मनाया जाएगा. इस बार सूर्य आराधना के महापर्व पर रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है.
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सूर्य षष्ठी पर्व की शुरूआत नहाय-खाय के साथ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से हो जाती है. त्रिदिवसीय व्रत के बाद चौथे दिन अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पारन किया जाता है. इस तरह लोकपर्व आरंभ 25 अक्टूबर से हो रहा जो 28 अक्टूबर को अरुणोदयकाल में अर्घ्य के साथ समाप्त होगा.

नहाय खाय : कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि में 25 अक्टूबर को नहाय खाय से पर्वारंभ होगा. इस पर्व में स्वच्छता का विशेष महत्व होता है. अत: पहले दिन घर की सफाई कर स्नानादि करें. लहसुन-प्याज समेत तामसिक भोज्य पदार्थों का त्याग कर दिन में एक बार भात व कद्दू की सब्जी ग्रहण कर जमीन पर शयन किया जाता है.

खरना : दूसरे दिन 26 अक्टूबर को पंचमी तिथि में खरना किया जाता है. दिन भर उपवास कर सायंकाल गुड़ से बनी खीर का भोजन किया जाता है.

अर्घ्य: तीसरे दिन षष्ठी तिथि में (27 अक्टूबर) को निराहार रह कर बांस के सूप- डालियों में विभिन्न प्रकार के ऋतुफल, मिष्ठान, नारियल, ईंख आदि रख कर किसी नदी, तालाब, पोखरा, बावली तट पर दूध-जल से अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. रात्रि जागरण कर दूसरे दिन सुबह अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य दिया जाता है. यह व्रत सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य व संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है. इसमें प्रत्यक्ष सूर्य देव का पूजन-वंदन किया जाता है, लेकिन डाला छठ पर भगवान भास्कर की दोनों पत्नियों उषा-प्रत्युषा व छठी मइया की भी पूजा होती है.

विशेष
-प्रथम अर्घ्य: 27 को शाम 5:30 बजे सूर्यास्त
-द्वितीय अर्घ्य: 28 को 6.25 बजे होगा सूर्योदय
-26-27 की भोर 2:16 बजे लग जा रही षष्ठी




