वाराणसीः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय सदैव भारत और राष्ट्र की बात करते थे. भारत अध्ययन केन्द्र द्वारा संचालित पाठ्यक्रम विभिन्न प्रान्तों, क्षेत्रों तथा जन-जन तक पहुंचे यह महत्त्वपूर्ण है. प्रो. चतुर्वेदी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र परिसर में विशिष्ट शैक्षणिक और सांस्कृतिक वातावरण के बीच ‘‘धर्मः जीवन में सनातन राग’’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के भव्य शुभारंभ पर मुख्य अतिथि पद से बोल रहे थे. यह आयोजन श्री विद्यानिवास मिश्र जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारतीय सांस्कृतिक, दार्शनिक और धार्मिक परंपराओं के गहन अध्ययन एवं विमर्श को प्रोत्साहित करना है.
सनातन धर्म में आधुनिकता का करना चाहिए उपयोग
इस मौके पर प्रो. चतुर्वेदी आचार्य विद्यानिवास मिश्र जी से जुड़े एक संस्मरण को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य में बाधक नही हो सकती है. उन्होंने कहा कि हमे अपने सनातन धर्म में आधुनिकता का उपयोग करते हुए कार्य करना चाहिए. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय में भारतीय ज्ञान परम्परा (इण्डियन नालेज सिस्टम) से सम्बन्धित प्रकोष्ठ बना है. हम सभी को इस सुविधा का उपयोग कर भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करना चाहिए. इसी तारतम्य में उन्होंने कहा कि हर चीज़ सेक्रेड होती, उस पर वाद-विवाद और तर्क- वितर्क होते रहना चाहिए.
देशभर से आए विद्वान रहे उपस्थित
इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों, शोधार्थियों, प्राध्यापकों और विद्यार्थियों की उपस्थिति ने उद्घाटन दिवस को अत्यंत जीवंत और सार्थक बना दिया. संगोष्ठी का संयुक्त आयोजन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली; भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी; लाल बहादुर शास्त्री पी.जी. कॉलेज, पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर, चंदौली; तथा विद्याश्री न्यास द्वारा किया गया है.
जीवन में नैतिकता, सत्य और करुणा का आधार
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण जी (अयोध्या) ने धर्म की व्याख्या करते हुए बताया कि संघात से विघात तक की अवधि को जीवन कहते है जिसे देश व काल में नापा जाता है, उस जीवन को अनुधातन व पुरातन के भेद से पहचानते हैं। ‘‘हम जो कहते हैं, उसे अपने आचरण में चरितार्थ करें, वही सच्चा धर्म है.’’ धर्म को जीवन में नैतिकता, सत्य और करुणा का आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके पालन में आचरण की ईमानदारी सर्वोपरि है.
इनकी रही विशेष उपस्थिति
संगोष्ठी में सारस्वत अतिथि के रूप प्रो. के.के. त्रिपाठी, प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र, सदस्य सचिव, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली उपस्थित रहे. कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी, समन्वयक, भारत अध्ययन केन्द्र ने प्रस्तुत किया. संचालन प्रो. राम सुधार सिंह, ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दयानिधि मिश्र, सचिव विद्याश्री न्यास ने किया.
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अनेक विभागों के आचार्य, छात्र-छात्रा व शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक सक्रिय रूप से भाग लिया.