
वाराणसी : सर्दी शुरु होते ही गंगा की लहरों पर प्रवासी परिंदों की उडान दिखाई देने लगी है. पक्षियों की चहचहाहट से गंगा की लहरें और भी आल्हादित हो उठी हैं. ठंड में गंगा में नौकायन करने वाले पर्यटकों को एक खास अनुभव मिलता है. इस मौसम में नौकायन करने वाले पर्यटक परिंदों के साथ सेल्फी लेने का आनंद लेते हैं. कुछ भाग्यशाली पर्यटकों को अपने हाथों से इन प्रवासी परिंदों को दाना खिलाने का अवसर भी मिलता है. स्थानीय लोगों के अनुसार, साइबेरिया से आने वाले ये सीगल वहां की जमी हुई बर्फ से बचने के लिए सर्दियों में गंगा में निवास करते हैं. वे अपने रहने और प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण और भोजन की तलाश में गंगा जैसे क्षेत्रों में आते हैं. वे आमतौर पर गंगा घाटों पर नवंबर से मार्च तक रुकते हैं और इस दौरान प्रजनन कर अंडे देते हैं.
पर्यटन को मिलती है संजीवनी
वाराणसी और आसपास के गंगेय क्षेत्र में सीगल की बड़ी संख्या इस बात का प्रतीक है कि पूर्वांचल में गंगा बेसिन इन परिंदों के लिए अत्यधिक उपयुक्त है. सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके आने के बाद उनके प्रवास से स्थानीय पर्यटन को एक नई संजीवनी मिलती है.
साइबेरियन पक्षी हर साल मध्य एशिया, पाकिस्तान और भारत के उत्तरी हिस्सों से होते हुए वाराणसी तक पहुंचते हैं। इसके लिए वे लगभग 5000 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं. यहां मां गंगा के आंचल में वे पूरी सर्दी बिताते हैं. प्रकृति का यह अद्भुत चमत्कार पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर देता है.
फरवरी तक इन पक्षियों का भारतीय उपमहाद्वीप में आने का सिलसिला जारी रहता है. यह यात्रा साइबेरियन पक्षियों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है. इस दौरान वे न केवल लंबी दूरी तय करते हैं, बल्कि कई जोखिमों और बाधाओं का सामना भी करते हैं.
गंगा के किनारे प्रवासी परिंदों की उपस्थिति न केवल प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाती है, बल्कि पर्यटकों के लिए एक अद्वितीय अनुभव भी प्रदान करती है. पर्यटक जब इन परिंदों को अपने करीब पाते हैं, तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता. यह दृश्य न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आए पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है.




