
Cloud Seeding : दिल्ली में हर बार की तरह इस बार भी प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है. इसी को देखते हुए राजधानी दिल्ली में 29 अक्टूबर को कृत्रिम बारिश कराने का फैसला किया है. दिल्ली सीएम ने कहा कि, क्लाउड सीडिंग दिल्ली के लिए एक ज़रूरत है और यह अपनी तरह का पहला प्रयोग राजधानी में होगा .
इससे पहले मौसम विभाग ने 27 अक्टूबर से लेकर 29 अक्टूबर तक दिल्ली में बादल छाए रहने की संभावना जताई है. इतना ही नहीं दिल्ली में सर्दी शुरू होते ही हवा में जहर घुलने लगता है. इससे लिए कई उपयोग किये गए लेकिन इसके बाद भी कोई असर नहीं दिखा. इसलिए अब नई तकनीक का सहारा लेना पड़ रहा है.

अब सवाल यह है कि, यह कृत्रिम बारिश क्या है ?...
तो आपको बता दें कि, इसे आप बिन मौसम बरसात का नाम दे सकते हैं. यह मौसम परिवर्तन करने की तकनीक है जो बादलों में संघनन या कंडेंसेसन को प्रोत्साहित करके बारिश को बढ़ाती है. इसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या शुष्क बर्फ जैसे कृत्रिम वर्षा रसायनों को बादलों में फैलाया जाता है ताकि नमी के कण एकत्रित होकर वर्षा की बूंदें बना सकें और उससे बरसात हो सके.
आसान भाषा में कहे तो यह बादलों में बीज डालने की प्रक्रिया है. इसमें मशीनों के द्वारा बादलों में छोटे-छोटे कण डाले जाते हैं, जो पानी की बूंदें या बर्फ के टुकड़े बनाते हैं और इससे बारिश तेज हो जाती है.
कृत्रिम बारिश की आवश्यकता क्यों ?...
बता दें कि, दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए इस तकनीक को कानपुर IIT के नेतृत्व में प्रयोग किया जा रहा है. इसका उद्देश्य दिल्ली में प्रदूषण कणों को कम करने, गर्मी और मानसून-पूर्व वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के एक उपकरण के रूप में किया जाना है.
वहीँ, अगर इसके बारे में वैश्विक स्तर पर बात करें तो इसके आशाजनक परिणाम देखने को मिले हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि आदर्श परिस्थितियों में क्लाउड सीडिंग से वर्षा में लगभग 5% से 15% की वृद्धि हो सकती है, लेकिन यह कोई गारंटीकृत समाधान नहीं है लेकिन पहले से मौजूद बादलों के बिना बारिश नहीं हो सकती है.
इससे पहले आंध्र प्रदेश में भी इसी तरह से बारिश कराई जा चुकी है. दिलचस्प बात यह है कि क्लाउड सीडिंग टेक्निक का यूज हवाई अड्डों में धुंध और बादल कम करने के लिए भी किया जाता है.
इतना ही नहीं इससे पहले दुनिया के कई देशों में कृतिम बारिश कराई गयी है जिसमें संयुक्त अरब अमीरात और चीन शामिल है. साल 2008 में चीन ने सूखे और वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बीजिंग ओलंपिक से पहले, क्लाउड सीडिंग का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया था.

कृत्रिम बारिश का स्वास्थ्य पर असर...
इतना ही नहीं कृत्रिम बारिश का स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. क्योंकि इसमें शामिल रसायन तत्व सिल्वर आयोडाइड के संपर्क में रहने से सांस लेने और त्वचा में जलन हो सकती है. हवा में कण मिलने से अस्थमा और सांस जैसी समस्या हो सकती है.




