Navratri 2025: नवरात्रि, जिसका अर्थ 'नौ रातें' है, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. यह शक्ति की देवी, दुर्गा, को समर्पित है, जो ब्रह्मांड की सृजन, पालन और संहारक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं. यह पर्व मुख्य रूप से वर्ष में दो बार मनाया जाता है. चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि. शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि यह माँ दुर्गा की महिषासुर पर विजय की कथा से जुड़ा है, और इसका समापन दसवें दिन विजयादशमी के रूप में होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.
वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व सोमवार, 22 सितंबर से शुरू हो रहा है. इस वर्ष यह पर्व नौ की बजाय दस दिनों का होगा. यह एक अत्यंत शुभ लक्षण है, क्योंकि एक तिथि का बढ़ना अत्यधिक फलदायी माना जाता है. इस बार चतुर्थी तिथि 25 और 26 सितंबर दोनों दिन रहेगी, जिससे पर्व की अवधि में वृद्धि होगी.
हिन्दू पंचांग के अनुसार, घटस्थापना (कलश स्थापना) का मुहूर्त प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर दिन सोमवार को सूर्योदय से सूर्यास्त तक अति उत्तम शुभ मुहूर्त है प्रतिपदा पूरा दिन होने के नाते अर्धरात्रि तक होने के नाते इस बार की नवरात्रि पूजा पाठ जप तप अनुष्ठान के लिए बहुत सर्वोत्तम समय है.
गौरतलब है कि इस बार देवी का आगमन और प्रस्थान सप्ताह के उस दिन के अनुसार होता है, जिस दिन नवरात्रि का प्रारंभ होता है. चूँकि इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ सोमवार, 22 सितंबर को हो रहा है, माँ दुर्गा का आगमन गज (हाथी) पर होगा. हाथी पर सवार होकर आना एक अत्यंत शुभ लक्षण माना जाता है . यह पूरे वर्ष सुख-समृद्धि और सौभाग्य का संचार करने का प्रतीक है . इसके विपरीत, प्रस्थान का वाहन मनुष्य है, जो एक अलग प्रतीकात्मक अर्थ रखता है.
शैलपुत्री (पहला दिन): हिमालय की पुत्री, ये देवी किसी भी अनुभव के शिखर पर स्थित दिव्यता का प्रतीक हैं. वे जीवन में स्थिरता और समृद्धि लाती हैं.
ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन): यह स्वरूप गहन तपस्या और शुद्ध, अछूती ऊर्जा का प्रतीक है. उनकी पूजा से साधक को स्वतः ही सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं.
चंद्रघंटा (तीसरा दिन): यह रूप मन को मोहित करने वाली सुंदरता का प्रतीक है. ये सभी प्राणियों में मौजूद सौंदर्य का स्रोत हैं.
कुष्मांडा (चौथा दिन): इन्हें प्राण ऊर्जा का पुंज माना जाता है, जो सूक्ष्मतम जगत से लेकर विशालतम ब्रह्मांड तक फैली हुई है. ये निराकार होकर भी सभी रूपों को जन्म देती हैं.
स्कंदमाता (पांचवां दिन): ये संपूर्ण ब्रह्मांड की संरक्षिका और सभी ज्ञान प्रणालियों की जननी हैं.
कात्यायनी (छठा दिन): चेतना के द्रष्टा पहलू से निकलने वाली ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो सहज ज्ञान की शक्ति लाती हैं. इन्हें मन की शक्ति भी कहा गया है, और रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए इनकी आराधना की थी.
कालरात्रि (सातवां दिन): ये गहन, अंधकारमय ऊर्जा का प्रतीक हैं, जो अनंत ब्रह्मांडों को धारण करती हैं. ये हर आत्मा को सांत्वना और शांति प्रदान करती हैं.
महागौरी (आठवां दिन): यह सुंदरता, कृपा और शक्ति का प्रतीक है, जो परम स्वतंत्रता और मुक्ति की ओर ले जाती है, उनकी पूजा से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
सिद्धिदात्री (नौवां दिन): ये अंतिम स्वरूप हैं, जो असंभव को संभव बनाती हैं और भक्तों को उनके प्रयासों का फल प्रदान करती हैं. उनकी आराधना से जीवन में चमत्कार प्रकट होते हैं