
UP Politics: उत्तर-प्रदेश की सियासत एक बार फिर से गर्मा सकती हैं. इन दिनों स्वामी प्रसाद मौर्य एक अलग ही अंदाज में नजर आ रहे हैं. स्वामी मौर्य का अंदाज कुछ ऐसा है कि अब वो यूपी की सियासत में अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रहे हैं. आलम ये कि समाजवादी पार्टी और बीजेपी पर गरम तो बसपा को लेकर नरम दिख रहे हैं. उनके ये हाव-भाव अब ये संकेत देने लगे हैं कि, एक बार फिर से वो मायावती के साथ हाथ मिलाने के मूड में हैं. ऐसे में ये सवाल उठने लगा है कि क्या सच में वे हाथी घर में वापसी करने वाले हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बदलते अंदाज का नतीजा भी हर किसी के सामने है. बीते कुछ दिनों पहले वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था “अखिलेश यादव विपक्ष में रहते हुए समझते हैं कि सपा की सरकार चल रही है. खुद को मुख्यमंत्री मानते हैं, इसके बावजूद भी वो बीजेपी को शिकस्त नहीं दे पाएंगे.” इस दौरान बातों-बातों में उन्होंने ये कह दिया कि अगर मायावती बाबा साहेब के मिशन पर आगे बढ़ती हैं तो उनसे हाथ मिलाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं हैं.

ये बयान सीधे तौर पर बीएसपी में वापसी को लेकर उनकी बेताबी को दर्शाता है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पलटूराम की लिस्ट में केवल नीतीश कुमार नहीं, बल्कि स्वामी प्रसाद मौर्य भी है. ये कभी कमल, हाथी तो कभी साइकिल पर सवार होना चाहते हैं मगर बड़ी बात तो ये है कि वो टिकते कहीं नहीं. कुछ ऐसा ही उनके बसपा वाले बयानों में भी नजर आ रहा है जिसे लेकर राजनीतिक सियासत में हलचल मची हुई है.

स्वामी प्रसाद मौर्य की इस बयानबाजी को देख राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौर्य की यह बेताबी 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले दलित वोट बैंक को एकजुट करने की रणनीति का हिस्सा है. 2017 में बीएसपी छोड़ने के बाद मौर्य ने बीजेपी और एसपी में दलित नेतृत्व का दावा किया था, लेकिन पार्टी में उनकी भूमिका सीमित रही. दूसरी ओर अब मायावती के प्रति नरमी दिखाना और धार्मिक नेताओं पर हमला करना उनका ये अंदाज कोई मामली नहीं, बल्कि दलित समाज में आंबेडकरवादी छवि को मजबूत करने का प्रयासों को जाहिर करता हैं.

बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य का राजनीतिक सफर काफी उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है. वे पहले बीजेपी में थे, फिर एसपी में शामिल हुए, जहां किसी बात को लेकर अपनी नाराज भी जाहिर की हैं. ऐसे में उनके इन तीखे बयानों से ये साफ है कि वे खुद को दलित-बहुजन आंदोलन का चेहरा बनाना चाहते हैं. ऐसे में ये माना जा रहा है कि उनके इस बदलते रंग को लेकर क्या मायावती उन्हें माफ करेंगी ? अब देखना ये होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य की बसपा मे जाने की बेकरारी किस हद तक बढ़ती है.




