
Pandit Chhannulal Mishra Death: शास्त्रीय गायक और पद्म पुरस्कार से सम्मानित कलाकार पंडित छन्नूलाल मिश्र का आज निधन हो गया. 89 साल की उम्र में उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली. काफी समय से सीने की बीमारी से जूझने के चलते उन्हें पिछले दिनों इलाज के लिए बीएचयू में भर्ती करवाया गया था. उधर पिता के निधन की जानकारी उनकी बेटी नम्रता ने दी. दुख भरे इस खबर से शुभचिंतकों और प्रशंसकों में शोक की लहर उमड़ पड़ी.

निधन की सूचना पाते ही मिर्जापुर स्थित उनके आवास पर जिला जज अरविंद मिश्र, जिलाधिकारी पवन कुमार गंगवार, एसडीएम गुलाब चंद्र समेत कई गणमान्य व्यक्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. गायक के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया और एक्स पर लिखा, “प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र जी के निधन से मैं अत्यंत दुखी हूं. उन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय कला और संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया.

गायक छन्नूलाल मिश्र का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा. ऐसे में उनका पार्थिव शरीर मिर्जापुर से वाराणसी के सिद्धगिरी बाग स्थित उनके पुराने आवास पर लाया गया. सिद्धगिरी बाग से अंतिम यात्रा आरंभ होकर मणिकर्णिका घाट पर संपन्न होगी.

अपने पिता पंडित छन्नू लाल मिश्र के निधन से दुखी बेटी ने कहा कि, मेरे पिता बड़े ही सरल स्वभाव के थे. उन्होंने अपने जीवन में बड़ी ही ईमानदारी से तरक्की को हासिल किया था. जिसका आज भी जीता-जागता उदाहरण हर किसी के सामने है. उन्हें पद्मभूषण, यश भारती, संगीत शिरोमणि और दो प्रदेशों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. इसी के साथ ही बेटी ने कहा कि उनके पिता संगीत, आध्यात्म, ठुमरी, चैती और कजरी के बारे में जिस तरह से बताते थे, पूरा विश्व और देश उनके प्रशंसक थे. यहीं कारण है कि पिता के साथ-साथ वो मेरे गुरु और भगवान भी थे, जो उनका पूरा जीवन अनुकरण करने योग्य है.

पंडित छन्नूलाल इतने सहज थे कि वो घर पर भोजपुरी भाषा में ही बात करते थे. उनसे मिलना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं था. इसके चलते हर कोई उनसे मिलने के लिए उस अड्डे पर पहुंच जाता था जहां वो विराजमान रहते थे. वह अड्डा कोई और नहीं बल्कि काशी नगरी के सिद्धगिरि बाग की वो गली जिसमें उनका बसेरा था. जहां वो अपने सुकुन भरे गीतों से लोगों को भाव-विभोर कर देते थे.

पं. छन्नूलाल अपने हाथों में हारमोनियम लेकर कभी भोलेनाथ शिव तो कभी भगवान राम तो कभी केवट का महिमामंडन करते थे. उनकी इस धुन से हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता था. काशी की मसान वाली होली हो, या फिर छन्नूलाल मिश्रा का गीत ये ना बजे ऐसा नहीं हो सकता. काशी में किसी के घर बच्चा पैदा होते ही छन्नूलाल जी का सोहर की धुन सुनाई देने लगती थी.

छन्नूलाल की ठुमरी के दिवाने लोग हर रोज इसे सुनना पसंद करते, दशकों तक काशी से गीत संगीत के ज़रिए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले पं. छन्नूलाल मिश्र का व्यक्तित्व कुछ अनूठा था. आज उनका शरीर भले खत्म हो गया लेकिन उनकी गायकी अमर रहेगी, इसमें जरा सा भी कोई संदेह नहीं है.
बनारस के रहने वाले गायक छन्नूलाल किराना घराना और बनारस घराना की गायकी के प्रतिनिधि कलाकार थे जिनमें बनारस की जान बसती थी. छन्नूलाल ने अपनी सांगीतिक शिक्षा मुजफ्फरपुर में पुरी की. चतुर्भुज स्थान में एक कोठरी में जीवन बिताते हुए उन्होंने संगीत साधना को अपना जीवन साथी बना लिया जिसने उन्हें खूब नाम दिया.
पं. छन्नूलाल के पिता ने उन्हें मोहन लाल नाम दिया था, लेकिन दादी और घर की औरतों ने प्यार से उन्हें 'छन्नू' बुलाना शुरू कर दिया. ग्रामीण समाज में यह मान्यता थी कि अगर बच्चे का नाम बहुत अनोखा या मजाकिया होगा तो उस पर किसी की बुरी नज़र नहीं लगेगी. जिसके चलते मोहन लाल नाम कहीं पीछे छूट गया और छन्नू नाम आगे बढ़ता चला गया.




