
वाराणसी – शास्त्रीय संगीत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले पद्मविभूषण पंडित छन्नू्लाल मिश्र का पार्थिव शरीर मिर्जापुर से गुरुवार की दोपहर करीब एक बजे उनके छोटी गैबी स्थित आवास लाया गया. इस दौरान संगीत प्रेमियों, साहित्यकारों, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों सहित क्षेत्र के लोगों ने अपने-अपने तरीके से उन्हें नमन किया. छन्नूलाल के आवास पर उनके पार्थिव शरीर का इंतजार किया जा रहा था. मणिकर्णिका घाट पर उनके पार्थिव शरीर का राजकीय सम्मान के साथ दाह संस्कार किया जाएगा.
पंडितजी का असली नाम था मोहन लाल मिश्र
क्या आप जानते हैं कि पं. छन्नू लाल मिश्र का असली नाम क्या था. नहीं तो जान लिजिए कि उनका असली नाम मोहन लाल मिश्र था, जिसे उनके पिताजी ने रखा था. बचपन ने बुरी नजरों से बचाने के लिए उनका घरेलू नाम छन्नू लाल रख दिया गया था और यही नाम विख्यात और प्रचलित रहा. पंडित छन्नूलाल ने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और होरी को जिस सहजता और आत्मीयता से गाया, वह उन्हें शास्त्रीय संगीत की भीड़ में अलग पहचान देता है. उनकी आवाज में गंगा–घाटों की मिठास, बनारसी बोली की आत्मीयता और लोक–संस्कारों की गहराई थी.

पंडित छन्नूलाल का जीवन संकटमोचन मंदिर और वहा की परंपराओं से गहराई से जुड़ा रहा. वे वर्षों तक संकटमोचन संगीत समारोह के प्रमुख आकर्षण रहे. उनके जीवन की एक विशेष कथा यह रही कि महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र (पूर्व महंत, संकटमोचन मंदिर, गंगा–योद्धा और समाज सुधारक) उनसे गहराई से जुड़े रहे. महंतजी शास्त्रीय संगीत के बड़े रसिक थे और उन्होंने पंडितजी को अपना गुरु माना. लंबे समय तक सप्ताह में दो बार पंडितजी संकटमोचन मंदिर में जाकर महंत जी को स्वर–साधना सिखाते थे. यह गुरु-शिष्य परंपरा केवल संगीत की शिक्षा भर नहीं थी, बल्कि आत्मा और श्रद्धा का संवाद भी था.

महंतजी पंडित जी को हर संभव सहयोग और संरक्षण देते रहे. इसीलिए पंडितजी भी स्वयं को संकटमोचन का आजीवन गायक मानते रहे. पंडित छन्नूलाल मिश्र केवल गायक नहीं थे, वे काशी की धरोहर थे. उनकी गायकी में बनारस की गलियां, घाट, उत्सव, लोकगीत और मां गंगा का प्रवाह सुनाई देता था.
उनके स्वर, उनकी ठुमरी, उनकी कजरी और उनका गाया मानस, बनारस और भारत की आत्मा में सदा गूंजता रहेगा. वर्तमान महंत प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्र के साथ भी उनका आत्मीय और पारिवारिक संबंध बना रहा.




