
इस समय बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां अपने पूरे शबाब पर है. हर तरफ एक ही सवाल है कि इस बार कुर्सी किसके पास जाएगी. आज जब राजनीति का चेहरा बदल चुका है. तब यह समझना होगा कि बिहार में मुख्यमंत्री पद की यात्रा कहां से शुरू हुई थी...
इस क्रम में हम लेकर आए हैं कहानी बिहार के हर मुख्यमंत्री की... उनकी सोच, संघर्ष और फैसले ....
श्री कृष्ण सिंह ... साल 1946 से लेकर 1961 आजाद भारत के पहले से लेकर स्वतंत्र भारत तक बिहार का नेतृत्व किया. उनके राजनीतिक फैसले और जीवन की घटनाएं आज भी बिहार की राजनीतिक घटनाएं समझने के लिए रोचक है. साल था 1937 जब कांग्रेस पहली बार सत्ता में आई तो उनका मंत्रिमंडल इस्तीफ़ा देना को तैयार हो गया. वजह थी जेल में बंद कैदियों और नेताओं की रिहाई.
बता दें कि, आजादी से पहले प्रांतीय सरकारों के मुखिया को प्रीमियर या पीएम कहा जाता था. संविधान बदलने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री का नाम दिया गया. सत्ता और प्रशासन के टकराव के बीच उन्होंने पीएम जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखने को मजबूर कर दिया और कहा कि- राज्यपाल को संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार काम करना चाहिए न कि, पसंद और नापसंद के आधार पर हस्तरक्षेप करना चाहिए.
इस पत्र ने हलचल मचा दी और जवाहर लाल नेहरू को श्री कृष सिंह की बात पढ़ी और राज्यपाल जयरामदास दौलतराम का इस्तीफ़ा ले लिया गया.
बिहार के लिए अगर कृष्ण सिंह के योगदान की बात करें तो उन्होंने शिक्षा, औद्योगिक, विकास और समाज सुधर में कई बड़े कदम उठाए.बरौनी और सिंदरी उर्वरक संयंत्र, रांची में हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन और दामोदर घाटी जैसी परियोजना शुरू की. वहीं, 1959 में स्थापित मुंगेर में 17000 हजार किताबों का संग्रहालय बनवाया जो आज श्री कृष्ण सेवा सदन से जाना जाता है.
अपने शासनकाल में उन्होंने गंगा में राजेंद्र सेतु का निर्माण कराया.जो बिहार में औद्योगिक और परिवहन विकास के लिए ऐतिहासिक परियोजना साबित हुई. वहीं, उन्होंने राज्य में औद्योगिक गलियारा, सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए कई परियोजनाओं की नींव रखी.




