वाराणसी : के जानकी घाट क्षेत्र की तंग गलियों में एक ऐसी कला जीवित है, जो आज भी लोगों के दिलों को छू जाती है. 75 वर्षीय राज कुमार पिछले चार दशकों से उन चीज़ों में जान डाल रहे हैं, जिन्हें लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं. पुराने शादी कार्ड, टूटी चूड़ियाँ, कागज़ के टुकड़े—इन सबको जोड़कर वे ऐसी अद्भुत कलाकृतियाँ तैयार करते हैं, जिनमें पारंपरिक काशी की रचनात्मकता साफ़ झलकती है.

बेकार समझे जाने वाले कागज़ में छुपी ‘कला’
राज कुमार बताते हैं कि इस कला की शुरुआत जब वे 9 साल के थे तब महज़ शौक़ के तौर पर की थी. धीरे-धीरे यह उनकी पहचान और आजीविका दोनों बन गई. अब बुजुर्ग होने पर भी उनके हाथों ने इस कला को जिंदा रखा है.

कला में संघर्ष भी, उम्मीद भी
अपनी उम्र के इस पड़ाव पर भी राज कुमार जी रोज़ाना घंटों बैठकर कलाकृतियाँ तैयार करते हैं. वे बताते हैं कि कला को गढने में मेहनत बहुत लगती है, लेकिन खरीदार कम हैं.
“लोग देखते हैं, तारीफ़ करते हैं… लेकिन खरीदना कम लोग चाहते हैं..
इसके बावजूद वे निराश नहीं होते. उनका मानना है कि कला जीवन का संबल है, और जब तक हाथों में शक्ति है, वे इसे जारी रखेंगे.

काशी आने वालों के लिए आकर्षण
जानकी घाट स्थित उनकी छोटी सी दुकान में रोज़ कई लोग कला देखने आते हैं. सोशल मीडिया पर उनकी पहचान बढ़ने के बाद अब कई युवा भी उनसे सीखने और उनकी कला को आगे बढ़ाने की इच्छा रखते हैं.

कला-संरक्षण की अपील
स्थानीय लोग और पर्यटक मानते हैं कि ऐसी पारंपरिक कलाओं का संरक्षण बेहद आवश्यक है. अगर कला जीवित रखनी है, तो कलाकारों तक पहुँचना और उन्हें प्रोत्साहित करना ज़रूरी है.
राज कुमार जी भी यही उम्मीद रखते हैं कि लोग कला को सिर्फ देखें नहीं, बल्कि खरीदकर कलाकारों का समर्थन भी करें.
Written By - Niharika Dwivedi




