
वाराणसी: लाटभैरव मंदिर के लीलास्थल पर गुरुवार की शाम को गंगा जमुनी तहजीब का अद्भुत नजारा लोगों को समक्ष रूबरू हुआ. एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान तो दूसरी तरफ ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच दोहे और चौपाइयों की गूंज सुनने को मिली. लाटभैरव मंदिर के विशाल प्रांगण में श्री आदि लाटभैरव वरुणा-संगम काशी की रामलीला शुरू हुई तो चबूतरे के पूर्वी हिस्से में रामचरितमानस का दोहा गूंज रहा था. साथ ही चबूतरे के पश्चिमी हिस्से में नमाजियों ने नमाज अता की.

न कोई व्यवधान, न ही अडचन
रामलीला के व्यास दयाशंकर त्रिपाठी जयंत के संवादों को दिशा दे रहे थे, तो दूसरी ओर इमाम नमाज का क्रम आगे बढ़ा रहे थे. दोनों आयोजन एक साथ, एक ही स्थान पर, बिना किसी व्यवधान और अडचन के चलते रहे. नमाज से पहले शुरू हुई रामलीला नमाज के बाद भी निर्बाध चलती रही. खास बात यह रही कि नमाज के बाद कई दूसरे संप्रदाय के लोगों ने भी रामलीला के दर्शक के रूप में न सिर्फ हिस्सा लिया, बल्कि रामलीला में प्रसाद स्वरूप तुलसी और मिश्री भी ग्रहण किया. यह दृश्य न सिर्फ आंखों को सुकून दे रहा था, बल्कि दिल को यह यकीन भी दिला रहा था कि गंगा जमुनी तहजीब हर तनाव पर भारी है.
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तुलसीदास ने की थी लीला की शुरूआत
लाटभैरव की यह रामलीला 500 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास और उनके करीबी मेघा भगत ने की थी. लाटभैरव मंदिर-मस्जिद के बीच की इस फर्श पर जयंत नेत्रभंग की लीला मस्जिद के निर्माण से भी पहले से होती आ रही है. लाटभैरव रामलीला के प्रधानमंत्री एडवोकेट कन्हैयालाल यादव ने इसे भारत की विविधता में एकता का प्रतीक बताया. उन्होंने कहा यहां नमाज और रामलीला का एक साथ होना हमारी सांस्कृतिक धरोहर की ताकत दिखाता है.





