वाराणसीः काशी में साइबर अपराध से जुड़ा एक बड़ा खुलासा हुआ है. पुलिस ने ऐसे चार बदमाशों को गिरफ्तार किया है जो सीधे-सादे लोगों को गुमराह कर उनके परिचयपत्रों पर फर्जी तरीके से सिम कार्ड लेकर उन्हें साइबर अपराधियों को बेच देते थे. ये बदमाश नाटी इमली क्षेत्र के पास से पकड़े गए.
पुलिस के अनुसार, ये गिरोह कूरियर और बसों के माध्यम से ये सिम कार्ड दिल्ली-एनसीआर के साइबर अपराधियों तक पहुंचाता था. गिरफ्तार किए गए चार आरोपियों में दो वोडाफोन कंपनी के एजेंट हैं, जबकि बाकी दो एजेंटों से सिम खरीदकर उन्हें आगे बेचते थे.
पुलिस की छापेमारी में 71 सिम कार्ड, एक बायोमेट्रिक मशीन, चार एंड्रॉइड मोबाइल फोन और 18,490 रुपये नकद बरामद किए गए हैं. साथ ही, एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनके लाइसेंस रद्द कराने की रिपोर्ट भी संबंधित कंपनी को भेजी गई है. डीसीपी क्राइम सरवणन टी ने इस सफल कार्रवाई के लिए साइबर सेल और लालपुर-पांडेयपुर पुलिस टीम की सराहना की है.
एक ही व्यक्ति के नाम पर 10 सिम कार्ड जारी
पुलिस उपायुक्त ने जानकारी दी कि साइबर अपराध की बढ़ती घटनाओं की जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि एक ही व्यक्ति के नाम पर 10 सिम कार्ड जारी किए गए हैं. इसी सुराग से जांच आगे बढ़ाई गई और थाना कोतवाली क्षेत्र के हरतीरथ निवासी अरुण त्रिपाठी से पूछताछ की गई. पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर जैतपुरा के कटेहर पीलीकोठी निवासी नेयाज अहमद को हिरासत में लिया गया. आरोपियों की निशानदेही पर आगे कार्रवाई करते हुए ग्राम तितिरा कुडीयारी, थाना तरवा, जिला आजमगढ़ निवासी (वर्तमान में पांडेयपुर में रहने वाला) सुनील यादव और नई बस्ती पांडेयपुर का शुभम अग्रहरी भी पुलिस ने गिरफ्तार किया.
पूछताछ में इन सभी आरोपियों ने कबूल किया कि उन्होंने बड़ी संख्या में सिम कार्ड बेचे हैं. उन्होंने बताया कि ये सिम कार्ड सामान्य तौर पर 100 से 150 रुपये में बेचे जाते थे, लेकिन साइबर अपराधी इन्हें 2000 से 2500 रुपये तक में खरीदते थे. पुलिस टीम ने सभी आरोपितों का चालान कर उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
इस तरह फंसाते है सिम लेने वाले ग्राहकों को
आजकल सिम कार्ड दो तरीकों से जारी किए जाते हैं: पहला है ई-केवाइसी (इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ग्राहक की पहचान), और दूसरा डी-केवाइसी (डॉक्यूमेंट के जरिए पहचान). ई-केवाइसी प्रक्रिया में ग्राहक के फिंगरप्रिंट से आधार कार्ड और नाम आदि की डिजिटल पुष्टि हो जाती है.
गिरफ्तार गिरोह इसी प्रणाली का दुरुपयोग कर रहा था. ये बदमाश पहले सिम लेने आए व्यक्ति का ई-केवाइसी करते थे, लेकिन कुछ देर बाद सर्वर न चलने का बहाना बनाकर उससे दस्तावेज़ भी मांग लेते थे. इसके बाद वे दस्तावेजों के आधार पर ग्राहक को एक गिरफ्तारजारी कर देते थे.
लेकिन असली धोखाधड़ी यहीं से शुरू होती थी. पहले लिए गए फिंगरप्रिंट और ई-केवाइसी डेटा का इस्तेमाल कर वे उसी व्यक्ति के नाम पर एक और सिम कार्ड जेनरेट करते और उसे साइबर अपराधियों को बेच देते थे.
इस तरह, एक ही व्यक्ति के नाम पर दो सिम जारी हो जाते. एक असली ग्राहक के पास और दूसरा साइबर ठगों के पास, जिससे कई तरह की ठगी को अंजाम दिया जाता था.
ठगी के तार बैंकों से जुड़े, कई बैंककर्मी जांच के घेरे में
गिरफ्तार किए गए आरोपियों से हुई पूछताछ में यह अहम जानकारी सामने आई है कि जिन सिम कार्डों की आपूर्ति वे साइबर अपराधियों को कर रहे थे, उनका इस्तेमाल न सिर्फ ठगी में, बल्कि फर्जी बैंक खाते खोलने के लिए भी किया जा रहा था. इस खुलासे के बाद पुलिस ने अपनी जांच को और तेज कर दिया है.
जांच एजेंसियों के रडार पर संदिग्ध बैंककर्मियों
मामले की तह तक पहुंचने में जुटी पुलिस को कुछ बैंककर्मियों की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है, जो अब जांच एजेंसियों के रडार पर हैं. हालांकि, पुलिस फिलहाल पूरी जांच पूरी किए बिना किसी पर सीधी कार्रवाई करने से बच रही है, ताकि कानूनी प्रक्रिया में कोई चूक न हो.
इस पूरे ऑपरेशन में साइबर सेल और स्थानीय पुलिस की टीम ने अहम भूमिका निभाई. पुलिस टीम में साइबर सेल प्रभारी मनोज कुमार तिवारी, इंस्पेक्टर राजीव कुमार सिंह (लालपुर-पांडेयपुर), दारोगा अजय कुमार पांडेय, धीरेंद्र कुमार तिवारी, हरिकेष यादव, हेड कांस्टेबल शिव कुमार प्रसाद, कृष्ण कुमार जायसवाल, कांस्टेबल अमरेश यादव, विराट सिंह, आदर्श आनंद सिंह, शिव बाबू, अंकित गुप्ता, रोहित तिवारी, रविश राय और अखिलेश सोनकर शामिल रहे.
पुलिस की यह कार्रवाई न सिर्फ एक गिरोह को बेनकाब करने में सफल रही, बल्कि साइबर अपराध की जड़ों तक पहुंचने की दिशा में एक अहम कदम भी साबित हो सकती है.