वाराणसी: गंगा तट पर स्थित प्राचीन और आस्था से जुड़ा हरिश्चंद्र घाट अगले साल अप्रैल तक अपने नए और आधुनिक स्वरूप में काशीवासियों को समर्पित हो जाएगा. इसी को लेकर बाढ़ की चुनौतियों के बावजूद इसके पुनर्विकास कार्य तेजी से जारी है.
विकसित की जा रही अनेक नई सुविधाएं
पुनर्विकसित हरिश्चंद्र घाट में कुल 13 शवदाह गृह (क्रिमेटोरियम) बनाए जा रहे हैं. इनमें लकड़ी और बिजली दोनों से शवदाह की सुविधा होगी. प्रदूषण नियंत्रण के लिए 100 फीट ऊंची चिमनी लगाई जाएगी. इसके अलावा घाट पर अनेक नई सुविधाएं विकसित होंगी जिसमें पंजीकरण कक्ष, सामुदायिक वेटिंग एरिया और हाल, सामुदायिक शौचालय, रैंप और स्टोर रूम, कोर्टयार्ड व सर्विस एरिया के अलावा अपशिष्ट संग्रह की आधुनिक व्यवस्था की जाएगी. पर्यटकों के लिए भी घाट पर अलग रास्ता तैयार किया जाएगा, जिससे उन्हें जलते शवों का दृश्य नहीं दिखेगा और धार्मिक आस्था व पर्यटन दोनों का सम्मान बना रहेगा.
सीएसआर फंड से हो रहा पुनर्विकास
हरिश्चंद्र घाट के पुनर्विकास में जेएसडब्ल्यू (जिंदल साउथ वेस्ट) फाउंडेशन की ओर से 19.60 करोड़ रुपये सीएसआर फंड उपलब्ध कराया गया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 7 जुलाई 2023 को इसका शिलान्यास किया था. कार्यदायी संस्था बीआइपीएल (ब्रिजटेक इन्फ्राविजन प्राइवेट लिमिटेड) और डिजाइनर एडिफाइस (मुंबई) इस परियोजना पर काम कर रहे हैं, जबकि नगर निगम पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी संभाल रहा है.
छोटे मंदिरों का स्थानांतरण और भव्य पुनर्निर्माण
पुनर्विकास के दौरान घाट पर मौजूद दो छोटे मंदिर बाधा बन रहे थे. जिला प्रशासन ने इन्हें अस्थायी रूप से अन्य स्थल पर स्थानांतरित करने का आदेश दिया है. कार्य पूर्ण होने के बाद इन मंदिरों, जिनमें राजा हरिश्चंद्र मंदिर भी शामिल है, को और अधिक भव्य स्वरूप दिया जाएगा.
बाढ़ से बचाव के लिए मजबूत आधार
पुनर्विकास कार्य में बाढ़ से बचाव पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. घाट का निर्माण सड़क मार्ग से 1.8 मीटर ऊंचाई पर किया जा रहा है ताकि बाढ़ का पानी शवदाह स्थल तक न पहुंच सके. इसके लिए 13 मीटर ऊंचा और 70 मीटर लंबा रिटेनिंग वॉल तैयार कराया गया है. घाट की मजबूती के लिए अब तक 270 पाइलिंग में से 230 का काम पूरा हो चुका है.
13,250 वर्ग फीट क्षेत्र में हो रहा विकास
हरिश्चंद्र घाट का पुनर्विकास कुल 13,250 वर्ग फीट क्षेत्रफल में हो रहा है। कार्यदायी संस्था का दावा है कि अब तक 30 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है और शेष अप्रैल 2026 तक पूर्ण कर लिया जाएगा. यह परियोजना काशी की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखते हुए आधुनिक सुविधाओं से लैस करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है.