
वाराणसी : महादेव की नगरी काशी में विराजमान काशीपुराधीश्वरी मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय वार्षिक व्रत-अनुष्ठान का मार्गशीर्ष (अगहन) कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि में 10 नवंबर से शुरू होने जा रहा है. पहले दिन मां अन्नपूर्णेश्वरी के दर्शन कर मंदिर से प्राप्त 17 गांठ का धागा धारण कर व्रत संकल्प लिया जाएगा.
पीठाधीश्वर महंत शंकरपुरी महाराज ने बताया कि 17 दिनों तक 17 प्रकार के पूजन, शृंगार, भोग-प्रसाद की सामग्री अर्पित की जाएगी. इसमें 17 परिक्रमा और 17 दीप जलाने की मान्यता है. इस अवधि में एक अन्नाहार या फलाहार किया जाता है. इस व्रत का उद्धापन 17 वर्ष पर किया जाता है.
27 नवंबर को प्रसाद स्वरूप धान की बालियां का वितरण
17 दिवसीय अन्नपूर्णा व्रत-अनुष्ठान की पूर्णाहुति मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि में 26 नवंबर बुधवार को होगी. पूर्वांचल भर से किसान खेतों से धान के फसल की पहली बाली लाकर मां अन्नपूर्णा को अर्पित करेंगे. उससे ही विशेष शृंगार झांकी सजाई जाएगी।अगले दिन 27 नवंबर को माता अन्नपूर्णा के दरबार से प्रसाद स्वरूप धान की बालियां भक्तों में वितरित की जाएंगी.
मंदिर से धान की बालियां भक्त ले जाकर अपने अन्न भंडार में रखते हैं या खेतों में बीज के रूप में उपयोग करते हैं. मान्यता है इससे मां अन्नपूर्णा की कृपा से वर्षपर्यंत भंडार भरा रहता है. खेतों में फसल की उपज उम्मीद से कई गुना अधिक होती है.
किसानों की अर्पित फसल से सजेगा दरबार
पूर्वांचल के किसान अपनी धान की पहली फसल माता के चरणों में अर्पित करते हैं. धान की बालियों का प्रसाद 27 नवंबर को भक्तों में वितरित किया जाएगा. महंत शंकर पुरी ने बताया कि माता को चावल का भोग लगाया जाएगा और किसानों के धान की पहली फसल से माता का शृंगार होगा. पहले दिन व्रतियों को 17 गांठ का धागा वितरित किया जाएगा. व्रत को 17 साल तक करने का विधान है. कुछ लोग 17 दिनों तक तो कुछ लोग पहले और अंतिम दिन व्रत रखते हैं. सुबह और धाम धागे और मां अन्नपूर्णा की पूजा होती है. मंदिर में तैयारियां शुरू हो गई हैं.




