
वाराणसी: संकरी गलियों और जाम से जूझती काशी अब आसमान से अपनी नई तस्वीर दिखाने जा रही है. कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया तक चलने वाला देश का पहला शहरी रोपवे प्रोजेक्ट सिर्फ़ परिवहन का साधन नहीं होगा, बल्कि काशी के भविष्य की दिशा तय करने वाला कदम साबित होगा. यह प्रोजेक्ट तीर्थयात्रियों, स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए तेज़, सुरक्षित और अनूठा सफ़र देगा.

क्यों ज़रूरी था रोपवे ?
वाराणसी की पहचान उसकी तंग गलियों और भीड़भाड़ से है. कैंट से गोदौलिया तक का इलाका हमेशा जाम से पस्त रहता है. श्रद्धालु और पर्यटकों की भारी भीड़, ऊपर से सड़कों का विस्तार लगभग असंभव. ऐसे में शहर को नई दिशा देने के लिए हवाई रास्ता ही सबसे बेहतर विकल्प माना गया.

सफ़र और अनुभव का संगम
रोपवे सिर्फ़ जाम से छुटकारा दिलाने वाला साधन नहीं, बल्कि एक अनुभव होगा. यात्री जब गोंडोला में बैठकर ऊपर से उड़ेंगे तो नीचे उन्हें नज़र आएंगे काशी के घाट, प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक गलियां. यह सफ़र पर्यटकों के लिए आकर्षण होगा और स्थानीय लोगों के लिए राहत.
यह इस रोपवे की ख़ासियत
भारत का पहला शहरी रोपवे प्रोजेक्ट
कुल लंबाई करीब 3.8 किलोमीटर
मार्ग: कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया चौक
बीच में चार स्टेशन: विद्यापीठ, रथयात्रा और गिरजाघर
हर गोंडोला में 10 यात्री बैठ सकेंगे
हर 12 सेकंड पर मिलेगा नया केबिन
45 मिनट का सफ़र अब सिर्फ़ 15–17 मिनट में पूरा होगा
बदलती काशी की तस्वीर
रोपवे के शुरू होने से न सिर्फ़ ट्रैफ़िक दबाव कम होगा, बल्कि काशी का पर्यटन अनुभव भी बदल जाएगा. देश–विदेश से आने वाले सैलानियों को यह सुविधा और आकर्षण दोनों देगा। आधुनिक तकनीक से लैस यह प्रोजेक्ट काशी को विश्वस्तरीय शहर की ओर ले जाएगा.
स्थानीय लोगों के लिए क्या मायने ?
विशेषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना की सफलता तभी होगी, जब स्थानीय लोग इसे अपने जीवन का हिस्सा मानें. अगर इसे सिर्फ़ पर्यटन का साधन माना गया, तो इसका असली उद्देश्य अधूरा रह जाएगा. लेकिन यदि यह रोज़मर्रा की यात्रा को आसान बनाएगा, तो निस्संदेह काशी की पहचान नई ऊंचाइयों तक जाएगी. काशी का यह हवाई सफ़र आने वाले समय में शहर की रफ़्तार और छवि दोनों को बदल देगा. यह सिर्फ़ परिवहन का साधन नहीं, बल्कि आधुनिक और प्राचीन काशी के बीच एक नया सेतु होगा.





