
वाराणसी : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सुनवाई के दौरान एनएमसीजी (राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन) पर नाराजगी जताई. अधिकारण ने पूछा कि नदियों की धारा और बाढ़ प्रभावित मैदानी क्षेत्रों पर अतिक्रमण पर एनएमसीजी मूकदर्शक क्यों बनी हुई है. एनजीटी ने मौखिक रूप से तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या एनएमसीजी डाकघर की तरह काम करती है? गुरुवार को सुनवाई के दौरान चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव एवं विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल ने एनएमसीजी के रवैये पर नाराजगी प्रकट करते हुए फटकार लगाई और कहा कि हर मामले में आपके द्वारा न्यायालय में यह तर्क दिया जाता है कि राज्य ने जवाब नहीं दिया है और राज्य को पत्र लिखा गया है.
एनजीटी ने पूछा कि आपके पास गंगा (पुनरुद्धार, संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016 जैसा कानून है, आपने जवाब नहीं देने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की. एनजीटी ने यह भी पूछा कि आपके जिलों के जिलाधिकारी क्या करते हैं जब नदियों के तल में अतिक्रमण किया जाता है.
किए सवाल
अतिक्रमण की पहली नींव रखने के समय आपके जिलाधिकारी कार्रवाई क्यों नहीं करते अथवा आपको सूचित क्यों नहीं करते? एनजीटी ने एनएमसीजी के उपस्थित वरीय पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप जो नदी नालों को टैप कर देते हैं, क्या यह स्थायी समाधान है?
इस पर उपस्थित एनएमसीजी के पदाधिकारियों ने कहा कि हम स्थायी समाधान करेंगे. एनजीटी ने समय निर्धारित करने के लिए कहा. मामले में अगली सुनवाई के लिए 5 फरवरी की तिथि निर्धारित की गई है. सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा अभियान के कार्यकारी निदेशक (तकनीकी) एवं अन्य वरीय पदाधिकारी भौतिक रूप से कोर्ट में मौजूद थे.
बता दें कि एनजीटी ने 11 नवंबर को सुनवाई के दौरान एनएमसीजी के नदियों में सीवेज प्रबंधन के तरीकों को लेकर नाराजगी प्रकट की थी. एनएमसीजी के निदेशक (तकनीकी) को वर्चुअल माध्यम से उपस्थित होने का आदेश दिया गया था. गुरुवार को सुनवाई के दौरान एनएमसीजी के वरीय पदाधिकारी कोर्ट के समक्ष भौतिक रूप से उपस्थित हुए. याचिकाकर्ता सौरभ तिवारी वर्चुअल रूप से सुनवाई में उपस्थित रहे.




