वाराणसी: अपने आराध्य के प्रति आस्था को जीवंत करती रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला शनिवार को रावण जन्म के साथ शुरू हो गयी. ये राम की ही लीला है कि रामनगर में रावण का जन्म हुआ और रावण के जन्म के साथ ही राजा राम चंद्र की जय के उद्घोष के साथ आकाश गुंजयमान हो उठा. रावण का जन्म हुआ है तो इसका नाश भी होगा. मुक्तआकाशीय मंच पर होने वाली वाराणसी के रामनगर की यह रामलीला यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है.
कुंवर ने निभायी परंपरा
काशीराज परिवार ने किले से बग्घी में निकलकर रामलीला के शुरुआत की परंपरा का निर्वाह किया. लीला देखने आये लोगों ने हर हर महादेव के पारंपरिक उद्घोष के साथ अपने कुंवर का स्वागत किया. यह परंपरा बरसों से चली आ रही है और जिसका निर्वहन राज परिवार पूरे आस्था और निष्ठा से करता रहा है. कुंवर अनन्त नारायण सिंह को 36वीं वाहिनी पीएसी के जवानों ने सलामी गारद दिया. हर तरफ प्रभू की इस लीला का देखने वालों का रेला उमड़ता रहा.
हर मन मगन हर आंख तृप्त
रावण जन्म के साथ ही क्षीर सागर की झांकी सजी और रावण ने यज्ञ भी किया. लीला के बीचों-बीच में हर हर महादेव और राजा रामचंद्र की जय का उद्घोष, इस बात का प्रमाण था कि जनार्दन की लीला से जनता आह्लादित है. हर मन मगन हर आंख तृप्त.जिधर भी नजर जा रही है, आस्थावानों का रेला लीला स्थल की ओर आता हुआ नज़र आ रहा है. रामचरित मानस की चौपाइयां पूरे वातावरण को प्रवित्र कर रही थीं.
परंपरा के साथ भाव का सम्मेलन
रामनगर की रामलीला तकरीबन 5 किमी. एरिया में अलग-अलग जगहों पर होती है. सबको यह पता होता है कि यहां भगवान राम की लीला का मंचन हो रहा है. लेकिन भाव और श्रद्धा इतनी प्रबल कि,श्री राम का प्रात्र निभा रहे व्यक्ति में साक्षात मर्यादा पुरुषोत्तम के दर्शन का लाभ, लीला के मंचन में भी परंपरा का पूरा ध्यान, न कोई माइक न लाइट पर हर नजर को हर दृश्य दिखायी और हर कान को हर संवाद सुनाई दे रहा है.