
वाराणसी: दशाश्वमेध घाट पर शुक्रवार का दिन राष्ट्रभक्ति और भावनाओं से ओत-प्रोत हो उठा. गंगा की लहरों के बीच उन महान क्रांतिवीरों की स्मृति जीवंत हो उठी जिन्होंने स्वतंत्रता की खातिर हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. प्रणाम वंदेमातरम् समिति के तत्वावधान में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में तमाम स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों के लिए तर्पण और पिंडदान कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई. इसके अलावा शनिवार को गंगा घाट पर पहलगाम हमले में मृत लोगों के लिए पिंडदान किया गया.

पुष्पांजलि से हुई शुरुआत
कार्यक्रम की शुरुआत क्रांतिकारियों के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर हुई. इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच समिति के सदस्यों ने गंगा जल में तर्पण कर वीर शहीदों को स्मरण किया. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, रानी लक्ष्मीबाई, बिरसा मुंडा, वीर सावरकर, पृथ्वीराज चौहान जैसे अमर बलिदानियों के साथ ही असंख्य ज्ञात-अज्ञात सेनानियों को याद कर घाट का वातावरण देशभक्ति से गूंज उठा.
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
समिति के अध्यक्ष अनूप जायसवाल ने इस मौके पर कहा –
"देश की आज़ादी के लिए जिन वीरों ने हंसते-हंसते प्राण न्यौछावर किए, उनकी स्मृति ही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है. नई पीढ़ी को उनके त्याग और बलिदान से प्रेरणा लेकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए."
उन्होंने आगे कहा कि हमें सिर्फ शहीदों को याद करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उनके बताए मार्ग पर चलकर अपने कर्तव्य को निभाना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
गूंजा ‘वंदे मातरम्’
कार्यक्रम के अंत में घाट पर मौजूद सभी लोगों ने एक स्वर में ‘वंदे मातरम्’ का उद्घोष किया. यह सामूहिक उद्घोष ऐसा प्रतीत हुआ मानो गंगा की लहरें भी इसमें सहभागी बनकर बलिदानियों के साहस और त्याग का संदेश दे रही हों.
उपस्थित रहे अनेक गणमान्य
इस अवसर पर समिति के सदस्य और शहर के कई गणमान्य लोग मौजूद रहे. इनमें मंगलेश जायसवाल, विकास शुक्ल, सुनील शर्मा, कन्हैयालाल सेठ, विजय गुप्ता, पूर्व पार्षद नवीन कसेरा, अखिल वर्मा, धर्मचंद केसरी, विष्णु यादव, सोमनाथ विश्वकर्मा, ओमप्रकाश यादव बाबू, सिद्धनाथ गौड़, अलगूचंद्र, विजय सिंह, एडवोकेट सुनील कनौजिया, राजेश दुबे और मनीष चौरसिया प्रमुख रहे. कार्यक्रम का संचालन धीरेंद्र शर्मा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन शंकर जायसवाल ने दिया. यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं था, बल्कि नई पीढ़ी को बलिदान और देशभक्ति का संदेश देने का भी एक प्रयास बना. गंगा के पावन तट पर हुए इस तर्पण ने याद दिला दिया कि स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान केवल इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि आज भी हमारे जीवन का मार्गदर्शन करता है.





