वाराणसी: डेंगू बुजुर्गों के लिए और भी खतरनाक साबित हो रहा है. युवाओं में जहां इसके सामान्य लक्षण जैसे तेज बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द और त्वचा पर चकत्ते अक्सर दिखते हैं, वहीं बुजुर्ग मरीजों में ये लक्षण स्पष्ट रूप से नहीं मिलते. इसकी बजाय उनमें सांस लेने में परेशानी, मानसिक स्थिति में बदलाव, अचानक कमजोरी और अचेत होने जैसी समस्याएं सामने आती हैं. यही कारण है कि समय पर डेंगू की पहचान न हो पाने से लगभग दो-तिहाई बुजुर्ग गंभीर अवस्था तक पहुंच जाते हैं. साथ ही डेंगू उनकी किडनी फंक्शन को भी प्रभावित करता है.
बीएचयू में हुआ शोध
यह तथ्य आईएमएस-बीएचयू के फार्माकोलॉजी विभाग की डॉ. उपिंदर कौर और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधार्थी अभिमन्यु वेलमुरुगन के संयुक्त अध्ययन में सामने आया है. इस शोध को अमेरिका के एलसीवियर पब्लिशर के प्रतिष्ठित जर्नल आइड केसेस में प्रकाशित किया गया है. शोध वर्ष 2023 के अगस्त से दिसंबर तक सर सुंदरलाल अस्पताल के जीरियाट्रिक वार्ड में भर्ती 182 बुजुर्ग मरीजों पर आधारित था. इनमें से 24 मरीज डेंगू से पीड़ित पाए गए.
अलग तरह के लक्षण
शोध में यह सामने आया कि बुजुर्गों में डेंगू का पैटर्न युवाओं से अलग होता है. इनमें सामान्य बुखार या दाने जैसे लक्षण कम दिखाई दिए, जबकि 41.7 प्रतिशत मरीजों में अत्यधिक कमजोरी, 37.5 प्रतिशत में सांस लेने में तकलीफ, 29.2 प्रतिशत में मानसिक भ्रम या व्यवहार में बदलाव और 20.8 प्रतिशत मरीजों में लगातार उल्टी की समस्या पाई गई. इन लक्षणों के अलावा अधिकतर मरीजों में एक्यूट किडनी इंजरी (तीव्र गुर्दे की क्षति) सबसे आम जटिलता के रूप में दर्ज की गई.
डॉ. उपिंदर कौर के अनुसार, बुजुर्ग मरीजों में केवल प्लेटलेट्स की कमी ही नहीं बल्कि अन्य असंतुलन भी पाए गए। करीब 58.3 प्रतिशत मरीजों में हाइपोनेट्रेमिया (सोडियम की कमी), 45.8 प्रतिशत में प्लेटलेट्स की कमी और 25 प्रतिशत में एनीमिया दर्ज किया गया. वहीं लगभग एक-तिहाई मरीजों में लीवर एंजाइम (SGOT-SGPT) का स्तर बढ़ा हुआ मिला, जिसकी वजह से उन्हें पाचन संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
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कोविड-19 के बाद बढ़ा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के बाद बुजुर्गों की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) में जो बदलाव आए हैं, उनका असर डेंगू की गंभीरता पर भी पड़ रहा है. इससे बीमारी की पहचान और भी कठिन हो गई है.
आगे और शोध की ज़रूरत
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि डेंगू के आयु और क्षेत्र-विशिष्ट स्वरूप को समझने के लिए बड़े पैमाने पर मल्टी-सेंटर (बहु-केंद्रित) अध्ययन किए जाने चाहिए. इनमें कोविड से जुड़े प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभावों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि बीमारी की जटिलताओं को और बेहतर ढंग से समझा जा सके.