वाराणसी: आध्यात्मिक और शैक्षणिक नगरी वाराणसी में भी आज शिक्षक दिवस श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया. विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों तक विशेष कार्यक्रम आयोजित हुए. विद्यार्थियों ने अपने गुरुजनों को पुष्प, उपहार और अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया. कई संस्थानों में शिक्षकों को उनके आजीवन योगदान के लिए विशेष रूप से सम्मानित भी किया गया.
डॉ. राधाकृष्णन से शुरू हुई परंपरा
भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा 1962 से शुरू हुई. इसी वर्ष देश के महान दार्शनिक और विद्वान डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने थे. जब उनके शिष्यों और मित्रों ने उनके जन्मदिन पर उत्सव मनाने की इच्छा जताई तो उन्होंने कहा कि इस दिन को उनके लिए नहीं, बल्कि सभी शिक्षकों को समर्पित दिवस के रूप में मनाया जाए. तभी से 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया.
वाराणसी में हुआ भव्य आयोजन
शिक्षक दिवस पर वाराणसी के विभिन्न विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सम्मान समारोह आयोजित किए गए. विद्यार्थियों ने नृत्य, गीत, कविताओं और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से शिक्षकों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की. कई स्थानों पर वरिष्ठ शिक्षकों को आजीवन योगदान के लिए सम्मानित किया गया, जिससे समारोह और भी विशेष बन गया.
भारतीय संस्कृति में गुरु का सर्वोच्च स्थान
वेद-उपनिषद से लेकर संत परंपरा तक, भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी महान बताया गया है।
"गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"
यह श्लोक स्पष्ट करता है कि गुरु ही सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता माने जाते हैं। संत कबीरदास ने भी गुरु को ईश्वर से बड़ा बताया –
"गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूँ पाय.
बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविंद दियो बताय॥"
गुरुकुल से आधुनिक शिक्षा तक
प्राचीन समय में गुरु केवल शिष्य के जीवन का निर्माता होता था, वहीं आज का शिक्षक समाज की सामूहिक चेतना का मार्गदर्शक है. फर्क भले हो, लेकिन दोनों की भूमिका अमूल्य है.गुरुकुल परंपरा में शिक्षा का अर्थ केवल ज्ञान नहीं, बल्कि अनुशासन, संस्कार, समाज सेवा और जीवन जीने की कला था. वहीं आधुनिक शिक्षा में तकनीक और डिजिटल साधनों का उपयोग बढ़ गया है, फिर भी नैतिक मूल्यों और जिम्मेदार नागरिक बनाने का दायित्व आज भी शिक्षक ही निभा रहे हैं.
तकनीकी युग में भी शिक्षक का महत्व बरकरार
ऑनलाइन कक्षाएँ, स्मार्ट बोर्ड और डिजिटल शिक्षा ने शिक्षण पद्धति बदल दी है, लेकिन शिक्षा का वास्तविक स्वरूप अब भी शिक्षक के बिना अधूरा है. वे केवल ज्ञान ही नहीं देते बल्कि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और उन्हें जीवन के आदर्श पथ पर अग्रसर करते हैं. इसलिए कहा जा सकता है कि शिक्षक दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि यह अवसर गुरुजनों के योगदान को नमन करने और शिक्षा के महत्व को समझने का प्रतीक है.