
वाराणसीः जिला मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर दूर पांडेयपुर-आजमगढ़ मार्ग पर बसे लमही गांव में आज भी अमर कथाकार उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद (असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव ) की यादें जिंदा हैं. यही वह पैतृक आवास है, जहां प्रेमचंद जी ने अपने जीवन के अनमोल पल गुजारे और समाज को दिशा देने वाले कई प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की. उनकी रचनाओं में खासकर गोदान, ईदगाह, दो बैलों की कथा, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, नमका का दारोगा, कफन, पूस की रात, निर्मला, शतरंज के खिलाड़ी आदि रहे,उनकी ये रचनाएं तत्कालीन समय के कथानक को आम लोगों को सरल भाषा में कहानी की तरह लगते हुए दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है.


प्रेमचंद स्मारक में ऐतिहासिक वस्तुएं हैं. संरक्षित
सम्राट मुंशी प्रेमचंद की यादों को संजाने के क्रम में प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा लमही में प्रेमचंद स्मारक का निर्माण कराया गया है. यहां मुंशी जी के जीवन और रचनाओं से जुड़ी कई ऐतिहासिक वस्तुएं संरक्षित हैं — जैसे उनका चरखा, पिचकारी, लेखन सामग्री, लैंप, लालटेन, घड़ियां आदि. स्मारक में उनके उपन्यासों और कहानियों को भी प्रदर्शित किया गया है ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके साहित्यिक योगदान से रूबरू हो सकें.

विशेष साफ-सफाई और सजावट
मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर बुधवार को उनके आवास और स्मारक परिसर में विशेष साफ-सफाई और सजावट की जा रही है. स्थानीय लोग, छात्र, कथाकार, कवि संग उनके चाहने वाले प्रेमचंद जी को श्रद्धांजलि देने पहुंच रहे हैं, जो भारतीय साहित्य के इस महान लेखक के प्रति लोगों के सम्मान और लगाव को दर्शाता है.





