वाराणसी: बारिश और बाढ़ के इस मौसम में नमी के कारण पानी दूषित हो रहा है. गंदे पानी और अस्वच्छ खानपान से जलजनित बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. यही वजह है कि बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल, ईएसआईसी अस्पताल, मंडलीय और जिला अस्पताल में हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. सबसे अधिक बच्चे वायरल हेपेटाइटिस की चपेट में आ रहे हैं. कुछ सावधानियां बरत कर बच्चों को इसकी चपेट में आने से रोका जा सकता है.
क्या है वायरल हेपेटाइटिस ?
वायरल हेपेटाइटिस एक ऐसी संक्रामक बीमारी है जो मुख्य रूप से लीवर (यकृत) को प्रभावित करती है. यह अलग-अलग प्रकार के वायरस हेपेटाइटिस A, B, C और E के कारण फैलती है. चिकित्सकों के अनुसार, हेपेटाइटिस A और E अधिकतर दूषित पानी और भोजन के सेवन से होते हैं, जबकि हेपेटाइटिस B और C संक्रमित रक्त, दूषित सुई, दवाइयों या किसी संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैलते हैं. इसके अलावा, गर्भवती महिला से यह संक्रमण गर्भावस्था या प्रसव के दौरान यह बच्चे तक भी पहुंच सकता है.
बच्चों में क्यों बढ़ रहा है खतरा ?
बरसात और बाढ़ के मौसम में बच्चों में वायरल हेपेटाइटिस का खतरा काफी बढ़ जाता है. इस दौरान कई बार गंदा पानी पीने की मजबूरी हो जाती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ता है. बाहर के तले-भुने या पैकेट बंद खाद्य पदार्थों का सेवन भी बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. साफ-सफाई की कमी और बच्चों की कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) इस बीमारी को और तेज़ी से फैलाती है.
बच्चों में दिखने वाले लक्षण
चिकित्सकों का कहना है कि यदि बच्चों को वायरल हेपेटाइटिस हो जाए तो उनके शरीर में कई तरह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. शुरुआत में बच्चों को तेज और लगातार बुखार आता है तथा बार-बार उल्टी या जी मिचलाने की समस्या होती है. पेट में दर्द और भूख न लगना भी इस बीमारी का आम संकेत है. धीरे-धीरे बच्चे की आंखों और त्वचा का रंग पीला पड़ने लगता है, जिसे आमतौर पर पीलिया कहा जाता है. इसके अलावा मूत्र का रंग गहरा हो जाता है और बच्चा थकान, कमजोरी व शरीर दर्द महसूस करता है. गंभीर स्थिति में लीवर में सूजन भी आ सकती है. ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है, क्योंकि समय पर इलाज से ही बच्चों को जटिलताओं से बचाया जा सकता है.
डॉक्टरों की राय
आईएमएस-बीएचयू के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर राजनीति प्रसाद के अनुसार, हेपेटाइटिस का पता रक्त परीक्षण से चलता है. हेपेटाइटिस-A प्रायः समय के साथ अपने आप ठीक हो जाता है, जबकि हेपेटाइटिस-B और C के इलाज में एंटीवायरल दवाओं का प्रयोग किया जाता है. प्रो. प्रसाद ने यह भी कहा कि हेपेटाइटिस-A और B से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं, इसलिए बच्चों का समय पर टीकाकरण कराना बेहद जरूरी है.
वहीं ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. पवन कुमार ने बताया कि बरसात के मौसम में गंदा पानी पीने के कारण बच्चों में हेपेटाइटिस के मामले अधिक देखने को मिल रहे हैं. उन्होंने सलाह दी कि बच्चों को रोजाना कम से कम दो लीटर स्वच्छ या उबला हुआ पानी पिलाना चाहिए. इसके साथ ही बाहर की तली-भुनी, मसालेदार और तेलयुक्त चीजें बिल्कुल नहीं देनी चाहिए. डॉ. पवन के अनुसार, यदि बच्चा बीमार है तो उसकी लिक्विड की जरूरत पूरी करना बहुत जरूरी है.
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बच्चों को वायरल हेपेटाइटिस से बचाने के लिए परिवार और अभिभावकों को कुछ जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए—
1. स्वच्छ पानी पिलाएं – हमेशा उबला या फिल्टर किया हुआ पानी ही दें.
2. साफ-सफाई रखें – खाने से पहले और टॉयलेट के बाद हाथ धोने की आदत डालें.
3. बाहर का खाना न खिलाएं – सड़क किनारे या खुले में मिलने वाला खाना दूषित हो सकता है.
4. टीकाकरण कराएं – हेपेटाइटिस A और B से बचाव के टीके समय पर लगवाएं.
5. संक्रमित व्यक्ति से दूरी – संक्रमित खून, सुई या शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क से बचें.
6. चिकित्सक से परामर्श – बुखार या उल्टी जैसे लक्षण नजर आएं तो दवा लेने में देर न करें