वाराणसी : नवीन परती की जमीनों पर अवैध कब्जा ग्रामीण क्षेत्रों में नासूर बनता जा रहा है. हालात ऐसे हैं कि शायद ही कोई गांव ऐसा हो जहां परती भूमि पर अतिक्रमण न हुआ हो. यह समस्या अब इतनी गहरी हो चुकी है कि कई बार आदेश होने के बाद भी कब्जे हटाए नहीं जाते.
ताजा मामला राजातालाब तहसील का है. 22 अगस्त को तहसील परिसर में वशिष्ठ नारायण उर्फ साधू बाबा ने आत्मदाह कर लिया था. अगले दिन उनकी मौत हो गई. साधू बाबा ने ग्राम जोगापुर में स्थित नवीन परती की भूमि से कब्जा हटवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. तहसील से लेकर एडीएम न्यायालय तक आदेश पारित हुए और बेदखली का निर्देश भी हुआ. इसके बावजूद कब्जा बरकरार रहा.आखिरकार प्रशासनिक उदासीनता से आहत होकर बाबा ने अपनी जान दे दी.
हर गांव में परती भूमि पर कब्जा
राजस्व विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि कोई भी गांव ऐसा नहीं है जहां नवीन परती की जमीन न हो. ये भूमि विशेष प्रयोजन के लिए चकबंदी के बाद छोड़ी जाती है और खतौनी के विशेष विवरण कॉलम (पत्र 41) में दर्ज होती है. इनका इस्तेमाल आमतौर पर सार्वजनिक हित के कामों जैसे खेल मैदान, मंदिर, आबादी विस्तार या गरीबों को आवंटन के लिए किया जाता है. लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश जगह इन पर भूमाफियाओं और दबंगों का कब्जा है.
यहां की स्थिति ज्यादा गंभीर
हाईवे, रिंग रोड, बाजार और मुख्य मार्गों के आसपास तो स्थिति और भी गंभीर है. यहां कब्जे की शिकायतें सबसे ज्यादा मिलती हैं. कई स्थानों पर मामले तहसील और डीएम कोर्ट में लंबित हैं, तो कहीं राजस्व कर्मियों की शह पर अवैध कब्जा वर्षों से कायम है.आरोप तो यह भी है कि कुछ कर्मचारी कब्जा बरकरार रखने और कार्रवाई न करने के एवज में अवैध वसूली तक करते हैं.
जिम्मेदारी किसकी ?
गांवों में भूमि प्रबंधन समिति का सचिव लेखपाल होता है. कानून के अनुसार वह राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत खुद बेदखली की कार्रवाई कर सकता है. वरिष्ठ अधिवक्ताओं का मानना है कि जहां वाद दर्ज नहीं है, वहां बिना देर किए कब्जा हटाया जाना चाहिए. साधू बाबा का मामला भी इसी धारा के अंतर्गत था, जहां तहसीलदार और एडीएम कोर्ट ने कब्जा खाली कराने का आदेश दिया था, लेकिन जमीन अभी तक मुक्त नहीं हो सकी.
भूमाफिया की नजर
वाराणसी के कई इलाके नवीन परती की इस समस्या का जीता-जागता उदाहरण हैं. शिवपुर बाजार के रेलवे फाटक के पास, कालिका धाम बाजार की मेन रोड, बाबतपुर मार्ग पर हरहुआ, कोइराजपुर और वाजिदपुर में पचासों बीघा परती भूमि है. इनमें बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा हो चुका है, जबकि खाली बची जमीन पर भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि है.
प्रशासन की चुप्पी
साधू बाबा जैसे मामले के बाद भी प्रशासनिक सक्रियता नहीं दिखी. सवाल उठ रहा है कि आखिर बेदखली आदेशों के बावजूद कब्जाधारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती ? क्या राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से ये नासूर और गहराता जा रहा है ? यदि उच्च स्तर पर व्यापक जांच कराई जाए तो संभव है कि अवैध कब्जों और भ्रष्टाचार के कई परतें उजागर हों.