वाराणसी: हजारों वर्षों से चली आ रही जनजातीय समाज की समृद्ध ज्ञान परंपरा भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की संकल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.यह विचार काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कुलपति प्रोफेसर अजित कुमार चतुर्वेदी ने शनिवार को स्वतंत्रता भवन में आयोजित ‘जनजातीय युवा संवाद-2025’ में अध्यक्षीय संबोधन के दौरान व्यक्त किए.
कुलपति ने रेखांकित की जनजातीय परंपरा की ताकत
कुलपति ने कहा कि जनजातीय समाज की विरासत अत्यंत समृद्ध है. प्रकृति, संस्कृति और समाज से जुड़ी उनकी परंपराएं आज भी आधुनिक भारत को नई दिशा दे सकती हैं. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपनी अस्मिता और सांस्कृतिक जड़ों को सहेजते हुए देश के विकास में योगदान दें.
‘अस्मिता के बिना अस्तित्व नहीं’ – आनंद
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और वनवासी कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय सह-युवा प्रमुख आनंद ने कहा कि अस्मिता के बिना किसी भी व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र का अस्तित्व संभव नहीं है. जनजातीय समाज की अस्मिता उसकी संस्कृति और परंपरा में निहित है, जिसे संरक्षित करना समय की आवश्यकता है.
बिरसा मुंडा के संघर्ष को किया याद
बीएचयू के कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह ने महान जननायक भगवान बिरसा मुंडा की जीवनगाथा का स्मरण किया और उनके बलिदान को जनजातीय समाज के लिए प्रेरणास्रोत बताया.
अतिथियों का स्वागत और संवाद का संचालन
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत डॉ. राजू माझी, डॉ. लिनेट खाखा, प्रो. मिनू, डॉ. साहेब राम तुडू और डॉ. विजय भगत ने किया. स्वागत भाषण डॉ. राम शंकर उरांव ने दिया जबकि संचालन का दायित्व डॉ. श्रुति आर. हंसदा ने निभाया.
युवा संवाद सत्र की अध्यक्षता
युवा संवाद सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार प्रकाश उइके ने की उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि शिक्षा, कौशल और संस्कृति के समन्वय से ही जनजातीय समाज राष्ट्र निर्माण की धारा में अग्रणी भूमिका निभा सकता है. इस कार्यक्रम का मुख्य संदेश यह रहा कि विकसित भारत का निर्माण जनजातीय समाज की सहभागिता और उनकी सांस्कृतिक-ज्ञान परंपरा को अपनाए बिना संभव नहीं है.