वाराणसी: चंद्रग्रहण के अवसर पर काशी सहित आसपास के जिलों से हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए पहुंचे. ग्रहण के स्पर्श, मध्य और मोक्ष तीनों कालों में बड़ी संख्या में लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई. हालांकि गंगा के बढ़े जलस्तर और तेज धार के कारण श्रद्धालुओं को अंदर तक पानी में जाने की इजाजत नहीं मिली और श्रद्धालु बनाए गए निश्चित स्थान पर ही स्नान करते हैं नजर आए.
चंद्र ग्रहण लगने से पहले ही घाटों पर पहुंच गए थे श्रद्धालु
चंद्र ग्रहण समाप्त होने के बाद वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर भारी संख्या में श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए पहुंचे. बताते चले कि चंद्र ग्रहण शुरू होने से पहले ही श्रद्धालुओं का जमावड़ा गंगा घाट पर लग गया था और ग्रहण की पूर्णावती के बाद श्रद्धालु गंगा स्नान कर दानपुण्य कर रहे हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान अगर मां गंगा में स्नान और दान के साथ जप करें तो भगवान पर लगने वाला ग्रहण करता है. लिहाजा श्रद्धालु वाराणसी दशाश्वमेघ घाट पर भारी संख्या में पहुंचकर गंगा स्नान के साथ ही भजन कीर्तन कर रहे हैं. गौरतलब है कि ग्रहण 9:57 पर लगा था और रात्रि 1:27 तक खत्म हो गया उसके बाद से वाराणसी के गंगा घाट पर श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई.
ग्रहण के समय पहले ये उपाय अपनाते थे पूर्वज
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पहले के समय में जब ग्रहण लगता था, तो लोग ढोल बजाकर, शोर मचाकर और दैत्यों की निंदा करते हुए उन्हें भगाने की कोशिश करते थे. उस वक्त धार्मिक लोग खासकर जप-तप और दान-पुण्य में लगे रहते थे. ऐसा माना जाता था कि राहु और केतु नामक दैत्य सूर्य और चंद्रमा पर हमला करके उन्हें निगलने की कोशिश करते हैं. जितना हिस्सा उनके मुंह में आता है, उतना ही ग्रहण दिखाई देता है. इस संकट से देवताओं को बचाने के लिए दान, तप और जाप करने की परंपरा शुरू हुई, ताकि उनकी रक्षा हो सके और कृतज्ञता व्यक्त की जा सके. यही कारण है कि ग्रहण के समय पूजा-पाठ और दान को बहुत महत्व दिया जाता है.