वाराणसीः हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. शास्त्रों की माने तो यह समय पूर्वजों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित करने का होता है. इसे श्राद्ध पक्ष या महालय भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इन दिनों पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से श्रद्धा और तर्पण स्वीकार कर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. बता दें कि इस बार पितृपक्ष 15 दिनों का होगा जो 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक चलेगा.
श्राद्ध का यह है महत्व और नियम
पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. इस दौरान तामसिक आहार, मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन का सेवन वर्जित है. श्राद्ध करने वालों को क्रोध, विवाद और अपमान से भी बचना चाहिए. साथ ही सात्विक आचरण करते हुए श्रद्धा और भक्ति से पितरों का स्मरण करने पर उनके जीवन में मंगल की प्राप्ति होती है.
बरतनी चाहिए ये सावधानियां
माना जाता है कि इन दिनों केवल पितरों को तृप्त करने के लिए ही अनुष्ठान किए जाने चाहिए. इसलिए पितृ पक्ष में किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश या मुंडन संस्कार का आयोजन नहीं किया जाता.
शास्त्रों की जानकारी
शास्त्रों के अनुसार, प्रतिदिन स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को जल अर्पण करना अत्यंत फलदायी होता है. श्रद्धापूर्वक संग मन से किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करता है और वे अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और उन्नति का आशीर्वाद देते हैं.
सात सितंबर को होगा पूर्णिमा का श्राद्ध
इस वर्ष पितृपक्ष 7 सितंबर (रविवार) से प्रारंभ होकर 21 सितंबर (रविवार) को सर्वपितृ अमावस्या तक रहेगा. सात सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध होगा, लेकिन इस दिन दोपहर 12:57 बजे से चंद्रग्रहण का सूतक प्रारंभ हो जाएगा. इसलिए पूर्णिमा का श्राद्ध ग्रहण से पहले ही कर लेना आवश्यक होगा. पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को माना जाता है. हालांकि, इसका आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से ही होता है.
चतुर्थी-पंचमी एक ही दिन
इस बार तिथियों के मेल के कारण चतुर्थी और पंचमी श्राद्ध एक ही दिन होंगे. 11 सितंबर को सूर्योदय से दोपहर 12:45 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगी. दोपहर 12:45 बजे से पंचमी तिथि शुरू होगी, जो 12 सितंबर की सुबह 9:58 बजे तक रहेगी. शास्त्रीय नियम है कि श्राद्ध मध्यान्ह काल में ही किया जाता है, इसलिए चतुर्थी और पंचमी दोनों श्राद्ध 11 सितंबर को ही होंगे. पहले चतुर्थी और फिर पंचमी श्राद्ध करने का विधान है.