
वाराणसी: पितृपक्ष में हर तिथि किसी न किसी श्राद्ध के लिए खास होती है, लेकिन आश्विन कृष्ण नवमी का दिन मातृनवमी कहलाता है. यह तिथि विशेष रूप से महिला पूर्वजों के श्राद्ध और तर्पण के लिए समर्पित है. इस दिन परिवारजन दिवंगत मां, दादी, परदादी, सास, बहन, बेटी आदि का स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.

मातृशक्ति को समर्पित दिन
मान्यता है कि जिस प्रकार पुरुष पूर्वजों का अलग-अलग तिथियों पर श्राद्ध किया जाता है, उसी प्रकार नवमी तिथि दिवंगत महिलाओं को समर्पित है. मातृनवमी को परिवारजन अपने घर की मातृशक्ति को याद कर तर्पण करते हैं. इसे मातृशक्ति का श्राद्ध दिवस कहा जाता है.

परिवार की महिलाएं रखती हैं व्रत
श्राद्ध में घर की महिलाएं विशेष भूमिका निभाती हैं. वे सुबह स्नान-ध्यान के बाद व्रत रखकर शुद्ध भाव से विविध व्यंजन बनाती हैं. फिर दिवंगत महिला पूर्वजों के नाम से भोजन निकालकर तर्पण किया जाता है. परंपरा के अनुसार, श्राद्ध शुरू करने से पहले गाय, कुत्ता, कौआ और अन्य जीवों के लिए भी अन्न का ग्रास निकाला जाता है. विश्वास है कि इन जीवों को भोजन कराने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
सोमवार को पड़ रही मातृनवमी का महत्व
इस बार मातृनवमी सोमवार को पड़ रही है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सोमवार का दिन चंद्रमा का दिन है, जो मातृत्व और भावनाओं का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में इस बार की मातृनवमी को विशेष फलदायी और पुण्यदायी बताया जा रहा है.

श्रद्धा और कृतज्ञता का पर्व
विद्वानों का कहना है कि मातृनवमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह समाज को यह संदेश देती है कि परिवार की नींव रखने वाली मातृशक्ति का ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता. जीवित रहते हुए मां और अन्य महिलाएं परिवार का आधार बनती हैं और मृत्यु के बाद भी उनके आशीर्वाद की छाया बनी रहती है. इसी क्रम में वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों में आज हजारों परिवार मातृनवमी का श्राद्ध कर अपनी दिवंगत मातृशक्ति पूर्वजों को तर्पण अर्पित कर आशीर्वाद की कामना कर रहे हैं.





