
वाराणसी - मृदापात्रों में रखा जल तथा मिट्टी के बर्तनों में बना भोजन स्वास्थ्य के लिए वरदान है. ऐसे में हमें प्लास्टिक का उपयोग छोड़कर मृदा पात्रों का उपयोग करना चाहिए. उक्त बातें चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के निदेशक प्रो एसएन संखवार ने कही. वे प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग में शताब्दी वर्ष के अन्तर्गत 10 नवंबर से आयोजित सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला "प्राचीन भारतीय मृदभांड एवं मृद्कला" के समापन समारोह के अवसर पर बोल रहे थे.
उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आयुर्वेद में मिट्टी से विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज सम्भव है. मिट्टी के बर्तनों में रखे जल तथा भोजन में स्वाभाविक रूप से विभिन्न प्रकार के खनिज तत्वों का मिश्रण होता है जो शरीर के लिए आवश्यक होते हैं. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि एमेरिटस प्रोफेसर विभा त्रिपाठी ने कहा कि प्राचीन मृदभांडो में इतिहास के कालक्रम को प्रभावित करने की क्षमता होती है.

मृदभांडों के आकार-प्रकार तात्कालिक लोगों के खाद्य व्यवहार निर्धारित करने में मदद करते हैं. विभागाध्यक्ष व कार्यशाला के संयोजक प्रो एमपी अहिरवार ने स्वागत उद्बोधन में शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों की उपयोगिता और महत्व को रेखांकित किया. कार्यशाला की सह संयोजिका प्रो सुजाता गौतम ने कार्यशाला के विगत सात: दिनों के कार्यक्रमों तथा उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण प्रदान किया.
कार्यशाला में व्यावहारिक प्रयोग के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कृत कला शिल्पी श्रीमान शिव प्रसाद व अनिल ने छात्रों को चाक पर मिट्टी से बर्तन, खिलौने, मूर्तियां, मनके आदि बनाने, सूखने, उनमें पॉलिश करने से लेकर पकाने की संपूर्ण प्रक्रिया का प्रशिक्षण दिया.
देश विदेश के प्रतिभागी रहे शामिल
कार्यशाला में श्रीलंका, बांग्लादेश व नेपाल सहित देश के विभिन्न राज्यों से आए कुल 74 प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किया गया. कुछ प्रतिभागियों ने कार्यशाला के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कार्यशाला की गतिविधियों की प्रशंसा की. कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ. विराग सोनटक्के तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विकास कुमार सिंह ने किया. समापन समारोह में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश बौद्ध संग्रहालय गोरखपुर के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. यशवंत सिंह राठौर, प्रो. अर्पिता चटर्जी, प्रो. जीके लामा, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. प्रभाकर उपाध्याय, डॉ. राकेश यादव, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. अभय कुमार, डॉ. सर्वेश कुमार, डॉ. प्राची विराग, डॉ. सचिन तिवारी, डॉ. ओमप्रकाश, डॉ. आरती, डॉ. दीपक राय, डॉ. रविशंकर एवं अन्य विभागों के आचार्यों सहित बड़ी संख्या शोध अध्येताओं व छात्रों की उपस्थिति रही.




