
वाराणसीः आस्था की नगरी वाराणसी के जिला कारागार में महिला बंदियों ने इस दीवाली पर एक अनोखा और प्रेरणादायक संकल्प लिया है. उनके हाथों से गाय के गोबर और गंगा की पवित्र मिट्टी से बने पर्यावरण के अनुकूल (ईको-फ्रेंडली) दीये इस वर्ष प्रभु श्री राम की नगरी, अयोध्या को रोशन करेंगे.
एक आस्था नगरी से दूसरी आस्था नगरी को जोड़ने की यह पहल न केवल बंदियों के पुनर्वास की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बल्कि यह दिवाली को 'आत्मनिर्भर' और 'पर्यावरण-हितैषी' बनाने का संदेश भी दे रही है.
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अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के लिए सुरक्षित
जिला कारागार प्रशासन के मार्गदर्शन में, पिछले एक सप्ताह से महिला बंदी पूरी लगन और उत्साह के साथ दीये बनाने के इस कार्य में जुटी हुई हैं. इन दीयों की खासियत यह है कि इन्हें बनाने में रासायनिक तत्वों का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जा रहा है. ये मुख्य रूप से गाय के गोबर (Cow Dung) और गंगा की शुद्ध मिट्टी (Ganga Clay) के मिश्रण से तैयार किए जा रहे हैं. ये 'ईको-फ्रेंडली' दीये सामान्य मिट्टी के दीयों की तुलना में अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के लिए सुरक्षित माने जाते हैं.
जेल प्रशासन का मानना है कि इस तरह के रचनात्मक कार्य बंदियों के मन में सकारात्मकता का संचार करते हैं और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में मदद करते हैं।

सकारात्मकता और पुनर्वास का मजबूत संदेश
जिला जेल के अधीक्षक, सौरभ श्रीवास्तव ने महिला बंदियों के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि, "यह पहल केवल दीये बनाना नहीं है, यह दो महान आस्था केंद्रों को जोड़ना और बंदियों के जीवन में आशा का प्रकाश भरना है. वाराणसी के गंगा की पवित्र मिट्टी और संकल्प के साथ बने ये दीये जब अयोध्या में जलेंगे, तो यह समाज में सकारात्मकता और पुनर्वास का एक मजबूत संदेश देंगे.




