आजकल बड़ी संख्या में लोग गर्दन के नीचे और पीठ के ऊपर उभरे हुए गोले जैसी समस्या से जूझ रहे हैं. इसे आमतौर पर गर्दन का कूबड़ या काइफोसिस कहा जाता है. अंग्रेज़ी में इसे डॉजर्स हंप (Dowager’s Hump) भी कहते हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक, हमारी रीढ़ की हड्डी में हल्का टेढ़ापन सामान्य होता है. लेकिन जब यह 45 डिग्री से अधिक झुक जाता है, तो समस्या गंभीर हो सकती है. ऐसे में पीठ दर्द, मांसपेशियों में जकड़न, थकान और रीढ़ के पास दर्द जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.
क्यों होता है गर्दन का कूबड़ ?
गलत मुद्रा (पोस्चर): लंबे समय तक झुककर बैठना, फ़ोन नीचे देखकर इस्तेमाल करना और कंप्यूटर पर लगातार झुककर काम करना इसकी मुख्य वजह है.
भारी बैग उठाना: लगातार कंधे पर बोझ डालने से रीढ़ टेढ़ी हो सकती है.
हड्डियों की कमजोरी: ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से रीढ़ की हड्डी टूट या दब सकती है.
बचपन में हड्डी का गलत विकास: कभी-कभी जन्म से ही हड्डियों का विकास सही न होने पर यह समस्या पैदा हो जाती है.
मोटापा और उम्र: दोनों ही कारक रीढ़ पर दबाव बढ़ाते हैं और बुज़ुर्गों में यह समस्या अधिक देखी जाती है.
आर्थोपेडिक विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका “सबसे बड़ा कारण गलत तरीके से बैठना है. लंबे समय तक झुककर मोबाइल फोन या कंप्यूटर इस्तेमाल करना रीढ़ की शेप को बिगाड़ देता है.”
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बचाव के तरीके
सही मुद्रा में बैठें, स्क्रीन हमेशा आंखों के स्तर पर हो.
लंबे समय तक बैठने से बचें और बीच-बीच में टहलें.
गर्दन व पीठ की मांसपेशियों के लिए स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ करें.
पर्याप्त शारीरिक गतिविधि और हल्की-फुल्की कसरत करें. वज़न को नियंत्रित रखें.
जांच और इलाज
काइफोसिस की पुष्टि के लिए आमतौर पर एक्स-रे, एमआरआई और सीटी स्कैन जैसे परीक्षण किए जाते हैं. इसके साथ ही यदि हार्मोनल असंतुलन या विटामिन डी की कमी की आशंका हो तो ब्लड टेस्ट भी कराया जाता है. उपचार की दृष्टि से सबसे पहले पोस्चर सुधारना और नियमित एक्सरसाइज़ को महत्वपूर्ण माना जाता है.अगर जांच में हार्मोनल गड़बड़ी या अन्य चिकित्सकीय कारण सामने आते हैं तो उसी के अनुसार दवाइयों से इलाज किया जाता है. वहीं, जब स्थिति गंभीर हो जाती है और सामान्य उपाय कारगर नहीं होते, तब सर्जरी का सहारा लिया जा सकता है