वाराणसी/उन्नाव: उन्नाव जिले में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा बड़ा घोटाला सामने आया है. यहां एक व्यक्ति ने फर्जी रेडियोलॉजी डिग्री लगाकर अल्ट्रासाउंड सेंटर खोलने का आवेदन किया. सतही तौर पर कागज सही दिखे, लेकिन प्रशासन की कड़ी जांच में पूरा मामला फर्जी साबित हुआ. यह खुलासा होने के बाद जिले के स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मचा है.
आवेदन में दर्ज था वाराणसी के डॉक्टर का नाम
बीघापुर डायग्नोस्टिक सेंटर के नाम से अल्ट्रासाउंड सेंटर खोलने के लिए अंशू पटेल नामक व्यक्ति ने आवेदन किया. आवेदन में रेडियोलॉजिस्ट के तौर पर वाराणसी निवासी डॉ. केशरी रमनलाल बनारस का नाम जोड़ा गया और उनके नाम की डिग्री भी प्रस्तुत की गई. पहली नजर में सब कुछ सही लग रहा था. लेकिन, उन्नाव के जिलाधिकारी गौरांग राठी ने नियमों के अनुसार दस्तावेजों की गहन जांच कराने का आदेश दिया.
सत्यापन में खुला खेल
डीएम के निर्देश पर डिग्री का सत्यापन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) से कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि प्रस्तुत डिग्री पूरी तरह फर्जी है और इस नाम से न तो कोई चिकित्सक रजिस्टर्ड है और न ही ऐसी कोई डिग्री जारी हुई है.
इस खुलासे ने प्रशासन को सकते में डाल दिया क्योंकि अगर समय रहते यह खेल पकड़ा न जाता तो एक फर्जी चिकित्सक के नाम पर सेंटर चालू हो जाता और न जाने कितने मरीजों की जान जोखिम में पड़ जाती.
PCPNDT एक्ट का उल्लंघन
यह मामला Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (PCPNDT) Act से भी जुड़ा है. यह कानून भ्रूण लिंग परीक्षण और अवैध गर्भपात रोकने के लिए लागू किया गया है. इसके तहत अल्ट्रासाउंड सेंटर्स को खोलने और संचालित करने के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं. फर्जी डिग्री के सहारे सेंटर खोलने की कोशिश न सिर्फ मरीजों की सुरक्षा के लिए खतरा है बल्कि कानून की सीधी अवहेलना भी है.
डीएम ने दिए सख्त निर्देश
डीएम गौरांग राठी ने कहा कि यह गंभीर अपराध है और इसमें किसी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी. उन्होंने तुरंत ही आवेदक अंशू पटेल और कथित चिकित्सक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया कि जिले में संचालित सभी अल्ट्रासाउंड और डायग्नोस्टिक सेंटर्स की डिग्रियों का दोबारा सत्यापन किया जाए ताकि ऐसे और फर्जीवाड़े की संभावना खत्म हो सके.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय
स्थानीय डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस घटना को बेहद खतरनाक करार दिया। उनका कहना है कि यदि यह सेंटर खुल जाता तो मरीजों की जान से सीधा खिलवाड़ होता. अल्ट्रासाउंड जैसे संवेदनशील क्षेत्र में अनुभवहीन और गैर-पात्र व्यक्ति काम करता तो गलत रिपोर्ट्स से मरीजों का इलाज प्रभावित हो सकता था. साथ ही यह पूरा खेल स्वास्थ्य व्यवस्था पर से जनता का भरोसा तोड़ सकता था.
क्यों गंभीर है यह मामला ?
1. जनता की सुरक्षा पर खतरा – बिना योग्य डॉक्टर के सेंटर से गलत जांच और रिपोर्टिंग होती.
2. कानून का उल्लंघन – PCPNDT एक्ट का सीधा उल्लंघन कर भ्रूण लिंग परीक्षण की राह खुल सकती थी.
3. प्रशासनिक चुनौती – ऐसे मामलों से प्रशासन पर निगरानी का दबाव और बढ़ता है.
4. गिरोह की आशंका – यह भी आशंका है कि इस फर्जीवाड़े के पीछे कोई संगठित नेटवर्क काम कर रहा हो.
प्रशासन की सख्त चेतावनी
डीएम ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अगर फर्जी दस्तावेज लगाकर सेंटर खोलने की कोशिश करेगा तो उसके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई होगी. जिलाधिकारी ने यह भी आश्वासन दिया कि भविष्य में हर मेडिकल सेंटर का सत्यापन और कड़ा होगा ताकि किसी को भी मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ का मौका न मिले. दूसरी ओर यह मामला स्वास्थ्य क्षेत्र में सक्रिय फर्जीवाड़े और माफियागिरी की पोल खोलता है. प्रशासन की तत्परता ने एक बड़ा घोटाला समय रहते उजागर कर दिया, वरना इसके दुष्परिणाम बेहद गंभीर हो सकते थे.