वाराणसी: दालमंडी क्षेत्र में प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण के दौरान लगातार नए-नए विवाद सामने आ रहे हैं.गणेश मंदिर, सीताराम, राधा-कृष्ण और सत्यनारायण ट्रस्ट की जमीन पर मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने अपने नाम दर्ज करा लिए हैं और सेवइत तक बन गए हैं. इतना ही नहीं, कई पुराने मकानों को तोड़कर वहां नई इमारतें भी खड़ी कर दी गई हैं.
आरोप है कि नगर निगम कर्मचारियों की मिलीभगत से इन मकानों के नंबर भी बदलवा दिए गए, जबकि नियम के अनुसार मंदिर और ट्रस्ट की संपत्ति पर किसी का नाम दर्ज नहीं हो सकता. अब यह जांच का विषय बन गया है कि सड़क चौड़ीकरण की सूची में ये नाम आखिर कैसे आ गए.
नगर निगम अपनी कमियों को छिपाने में जुटा
सड़क चौड़ीकरण को लेकर राजस्व, लोक निर्माण विभाग और नगर निगम की संयुक्त टीम ने जब सर्वे शुरू किया, तब मंदिर और ट्रस्ट की जमीन का मामला सामने आया. नगर निगम अब अपनी कमियों को छिपाने में जुटा हुआ है.प्रस्तावित परियोजना के तहत दालमंडी क्षेत्र में 184 मकान प्रभावित हो रहे हैं.शासन ने सड़क निर्माण और प्रभावित भवनों व जमीनों का मुआवजा देने के लिए करीब 215 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए हैं.
फिलहाल भवन मालिकों को मुआवजा देने की तैयारी चल रही है.वहीं, मंदिर और मस्जिद की जमीन को लेकर लोक निर्माण विभाग उच्च अधिकारियों से चर्चा कर रहा है.नगर निगम के दस्तावेजों में ट्रस्ट की संपत्ति पर मुस्लिम सेवइत दर्ज होना मुआवजा प्रक्रिया के लिए बड़ी चुनौती बन गया है.
क्षेत्रीय पार्षद इंद्रेश सिंह का कहना है कि चौड़ीकरण की जद में शत्रु संपत्ति, मंदिर, ट्रस्ट और मस्जिद भी आ रही हैं. ऐसे में जिला प्रशासन को संवेदनशीलता के साथ उचित निर्णय लेना होगा ताकि सरकार की छवि धूमिल न हो.
मिली गड़बड़ियाँ भी और बढ़ा रही विवाद
नगर निगम के रिकॉर्ड में मिली गड़बड़ियां भी विवाद को और बढ़ा रही हैं. उदाहरण के लिए, मकान नंबर सीके 42/100-101 में श्री गणेश जी व ठाकुर जी का नाम दर्ज है, लेकिन टैक्स रसीद में धन्नूलाल, मनोज शुक्ला और निजामुद्दीन सेवइत के रूप में दर्ज हैं.
इसी तरह मकान नंबर सीके 43/160-159-1-एफ पर राधा-कृष्ण और सत्यनारायण जी का नाम है, मगर निगम के पोर्टल पर मोहम्मद अलाउद्दीन और मोहम्मद सलाउद्दीन का नाम सेवइत के रूप में दर्ज है. वहीं, मकान नंबर सीके 43/160-बी में भी मंदिर की संपत्ति पर जाफर परिवार के कई लोगों के नाम दिखाई दे रहे हैं.
इन विवादित नामों के चलते दालमंडी क्षेत्र के लोगों में चर्चा तेज है कि आखिर मंदिर और ट्रस्ट की जमीन पर दूसरों के नाम कैसे चढ़ गए और इसमें नगर निगम की भूमिका क्या रही.