वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र में मंगलवार को विद्यानिवास मिश्र जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में "धर्मः जीवन में सनातन राग" विषय पर संगोष्ठी के दूसरे और तीसरे अकादमिक सत्र का आयोजन हुआ. 'जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है'—इस सनातन सत्य के आधार पर विद्वानों ने धर्म के विभिन्न पहलुओं पर गहन विमर्श किया.
सत्र में रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत, स्मृति, पुराण और धर्मशास्त्र से लेकर वेदांत, न्याय वैशेषिक, मीमांसा और सांख्य-योग दर्शन तक में धर्म की विविध व्याख्याओं पर चर्चा हुई.
प्रो. अनंत मिश्र ने रामचरितमानस के संदर्भ में कृतज्ञता को सबसे बड़ा धर्म बताया. वहीं प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने कहा कि शास्त्र हमेशा लोक के सिद्धांतों को अपनाकर लोकहित में प्रवाहित करता है. इसी तरह
प्रो. माधव जनार्दन रटाटे ने श्रीमद्भागवद्गीता में धर्म के चार स्तंभ—सत्य, दया, तप और दान—को रेखांकित किया.
डा. गायत्री प्रसाद पांडेय ने महाभारत के आधार पर परहित और सत्य को धर्म का सार बताया. प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने पौराणिक दृष्टिकोण से धर्म को जीवन का सनातन तत्व बताया. प्रो. भगवत शरण शुक्ल ने कहा कि सनातन धर्म ही प्रथम धर्म है, जो ब्रह्मा, विष्णु और सत्य का पर्याय है. वहीं अध्यक्षीय उद्बोधन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. हरिदत्त शर्मा ने महाभारत को "भारतीय चिंतन और धर्म का विश्वकोष" बताते हुए कहा कि सत्य-असत्य के संघर्ष में अंततः धर्म की विजय होती है.
तृतीय सत्र में जेएनयू के प्रो. रामनाथ झा ने उपनिषदों में धर्म के अंतर्यामी स्वरूप पर प्रकाश डाला. सारस्वत अतिथि प्रो. शशिप्रभा कुमार, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो. उपेंद्र त्रिपाठी, प्रो. सुद्यग्न आचार्य और प्रो. शीतला प्रसाद पांडेय ने क्रमशः न्याय वैशेषिक, वेदांत, मीमांसा, शंकराचार्य और आगमशास्त्र में धर्म पर अपने विचार साझा किए.
कार्यक्रम में देशभर से आए छात्र, शोधार्थी और विद्वानों की उपस्थिति रही. स्वागत डा. दयानिधि मिश्र ने किया, संचालन डा. प्रीति त्रिपाठी ने और धन्यवाद ज्ञापन डा. ज्ञानेन्द्र नारायण राय ने दिया