वाराणसी: गंगा और उसकी सहायक नदी वरुणा का जलस्तर लगातार बढ़ने से काशी का जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है. दोनों नदियों के उफान ने मिलकर ऐसा कहर बरपाया है कि शहर के हजारों परिवारों को घर छोड़कर पलायन करना पड़ा है. मोहल्ले, कॉलोनियां और सड़कों पर नाव चल रही हैं. कई इलाकों में घरों के बाहर का दृश्य मिनी स्विमिंग पूल जैसा बन गया है.
घर की ऊपरी मंजिलों पर फंसे लोग
दनियालपुर, ढ़ेलवारिया, कोनिया, नक्खीघाट, सलारपुर, हुकुलगंज, सरैया और नई बाजार जैसे मोहल्ले पूरी तरह पानी में डूबे हैं. जिनके पास विकल्प था वे किराए के मकानों में शरण ले चुके हैं, वहीं गरीब तबके के लोग या तो राहत शिविरों में जा रहे हैं या फिर अपने मकानों की ऊपरी मंजिलों पर टकटकी लगाए हालात का सामना कर रहे हैं.
खतरे के निशान तक पहुंचा गंगा का जलस्तर
महज एक महीने में तीसरी बार गंगा का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया है. शुक्रवार सुबह का स्तर 70.83 मीटर दर्ज किया गया, जो खतरे के निशान से बस कुछ सेंटीमीटर दूर है. आधा सेंटीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ता पानी चिंता और बढ़ा रहा है.
धार्मिक आस्था भी संकट में
बाढ़ ने काशी के धार्मिक जीवन को भी हिला दिया है. पिंडदान – घाटों तक पहुंचने का रास्ता बंद होने से श्रद्धालु सड़क किनारे ही पिंडदान कर रहे हैं. गंगा आरती – दशाश्वमेध घाट पर अब आरती छत से हो रही है, वहीं अस्सी घाट पर सड़क किनारे. मंदिर डूबे – घाट किनारे बने करीब 5000 छोटे मंदिर पूरी तरह जलमग्न हो गए हैं.
राहत शिविरों में 4701 लोग, किसान सबसे ज्यादा प्रभावित
प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक अब तक 8047 लोग घर छोड़ चुके हैं, जिनमें 4701 लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं.
सबसे बड़ा झटका किसानों को लगा है –
इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका दोनों पर बड़ा असर पड़ रहा है.
रेलवे संचालन पर भी मंडरा रहा खतरा
बाढ़ का असर अब रेलवे पर भी पड़ सकता है. उत्तर रेलवे के एडीआरएम बीके यादव ने बताया कि गंगा के जलस्तर पर हर घंटे निगरानी की जा रही है. मालवीय पुल पर लगातार पेट्रोलिंग हो रही है. यदि पानी खतरे के पार गया तो सुरक्षा कारणों से ट्रेनों की गति घटाकर सिर्फ 10 किमी/घंटा करनी पड़ेगी.
बाढ़ का कहर और उम्मीद की निगाहें
लगातार चौथी बार आई बाढ़ से वाराणसी के लोगों का धैर्य टूट रहा है. लोग अपने घर, दुकान और खेत गंवाकर अब केवल प्रशासन की ओर राहत और बचाव की उम्मीद लगाए हैं. नावों पर सामान ढोते, पानी में घिरे मंदिरों की घंटियां, सड़क किनारे पिंडदान और छतों से गंगा आरती. यह सब काशी की तस्वीर को दर्द और संघर्ष से भर दे रहे हैं.