
वाराणसी: गंगा नदी, जिसे भारत की जीवनदायिनी धारा कहा जाता है, अब गंभीर प्रदूषण संकट से जूझ रही है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जितेंद्र पांडेय और शोध छात्रा नेहा नाज ने अपने दो साल के लंबे अध्ययन में यह चौंकाने वाला खुलासा किया है. उनका कहना है कि कानपुर से वाराणसी तक गंगा के जल, बालू और मछलियों में पालीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) की खतरनाक मात्रा मौजूद हैं.

क्या है पालीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH)?
पीएएच जहरीले रसायन हैं, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम, गैस), औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों के धुएं, जंगल की आग और शवदाह से उत्पन्न होते हैं. पहले ये अधिकतर वायु प्रदूषण में पाए जाते थे, लेकिन अब इनकी बड़ी मात्रा गंगा जल में पाई जा रही है.
शोध की प्रमुख बातें
नमूना स्थल : जाजमऊ (कानपुर-उन्नाव), मेहंदी घाट (कन्नौज), अदलपुरा (मिर्जापुर), मणिकर्णिका घाट (वाराणसी).
परीक्षण सामग्री : गंगा का पानी, नदी की बालू और रोहू मछली.
परीक्षण लैब : साफिस्टिकेटेड इंडस्ट्रियल मटेरियल लैब, नई दिल्ली.
मिले हुए रसायन : नैफ्थालीन, एसिनाफ्थालीन, फिनांथीन, फ्लूरांथीन, पायरीन, बेंजोएंथ्रासीन, बेंजोपायरीन और क्राइसीन.
मात्रा : पानी में 75 नैनोग्राम प्रति लीटर तक, बालू में 20 नैनोग्राम प्रति ग्राम से अधिक और रोहू मछली में 20 नैनोग्राम प्रति ग्राम से ज्यादा.

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर
हृदय रोग और अस्थमा की आशंका बढ़ती है.
गैस्ट्रिक कैंसर का खतरा.
प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव.
आंख, त्वचा और श्वसन तंत्र को नुकसान.
गंगा का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित, जिससे मछलियों और जलीय जीवों की संख्या घटने का खतरा.
बचाव के उपाय
1. जीवाश्म ईंधन और भारी धातुओं का उपयोग नियंत्रित किया जाए.
2. नदियों का बहाव बढ़ाया जाए और प्रदूषण के स्रोतों को कम किया जाए.
3. शवदाह घाटों और औद्योगिक इकाइयों से होने वाले उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण लगाया जाए
4. प्लास्टिक, कीटनाशक और डाई इंडस्ट्री पर निगरानी रखी जाए.

भविष्य के फायदे (यदि समय रहते कदम उठाए जाएं)
गंगा को पुनर्जीवित किया जा सकेगा.
प्रदूषण नियंत्रण से गंगा का जल फिर से पेय योग्य और मछली पालन के लिए सुरक्षित होगा.
स्वास्थ्य लाभ – हृदय रोग, अस्थमा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा घटेगा.
पर्यावरण संरक्षण – जलीय जीवन सुरक्षित रहेगा, जिससे जैव विविधता को बल मिलेगा.
आर्थिक लाभ – मछली उत्पादन बढ़ेगा और गंगा से जुड़े पर्यटन व धार्मिक कार्यों को नया जीवन मिलेगा.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – यह शोध आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रदूषण नियंत्रण और नदी प्रबंधन की मजबूत नींव बनेगा.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्व
यह शोध जर्मनी के प्रतिष्ठित जर्नल स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित हुआ है, जिससे गंगा की समस्या अब वैश्विक मंच पर भी चर्चा का विषय बन गई है. दुनिया की अन्य बड़ी नदियों जैसे अमेजन, मिसीसिपी, यांग्जी और येलो में भी यही समस्या देखी जा रही है. यह शोध एक चेतावनी भी है और अवसर भी. चेतावनी इसलिए कि गंगा का जल और उसमें पाई जाने वाली मछलियां अब सुरक्षित नहीं हैं. अवसर इसलिए कि यदि समय रहते प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जाए, तो गंगा फिर से शुद्ध और जीवनदायिनी धारा बन सकती है.





